बुर्के पर बैन लगाने के फैसले पर श्रीलंका ने लिया यू-टर्न, वजह जानकर चौक जाएंगे आप

श्रीलंका के जन सुरक्षा मंत्री शरत वीरसेकरा ने सप्ताहांत में कहा था कि उन्होंने नकाब पर प्रतिबंध के प्रस्ताव वाले कैबिनेट के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं।वीरसेकरा ने कहा था कि बुर्का राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करता है।

श्रीलंका में 2019 में ईस्टर रविवार के दिन चर्च और होटलों में हुए बम हमलों के बाद बुर्का पहनने पर अस्थायी रोक लगा दी गई थी। इन हमलों में 260 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।

श्रीलंका की आबादी करीब दो करोड़ 20 लाख है, जिनमें से मुस्लिमों की आबादी करीब नौ प्रतिशत, जातीय तमिलों की 12 फीसदी और बौद्ध अनुयायियों की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी है। ईसाइयों की आबादी लगभग सात प्रतिशत है। तमिलों में से ज्यादातर हिंदू हैं।

इसके बाद श्रीलंका की कैबिनेट के प्रवक्ता ने बयान जारी कर कहा कि कैबिनेट ने अपनी साप्ताहिक बैठक में नकाब या बुर्के पर प्रतिबंध लगाने के मामले पर विचार नहीं किया।

कैबिनेट के प्रवक्ता एवं वरिष्ठ मंत्री केहेलिया रामबुकवेला ने कहा कि सरकार ”चेहरे को ढकने पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया में जल्दबाजी नहीं” करेगी। मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर विचार-विमर्श के संदर्भ में खुफिया आकलन के आधार पर फैसला किया जाएगा।

श्रीलंका में पाकिस्तान के उच्चायुक्त साद खट्टक की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई थी जब श्रीलंका के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री सरत वीरासेखरा ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए कैबिनेट मंत्रियों से बुर्का पर प्रतिबंध लगाने की मंजूरी देने की मांग के लिए एक पत्र पर हस्ताक्षर किए थे।

बुर्का और चेहरा ढकने वाले अन्य कपड़े पर प्रतिबंध लगाने के श्रीलंका के प्रस्ताव पर एक समाचार रिपोर्ट को ट्विटर पर पोस्ट करते हुए, खट्टक ने कहा कि नकाब पर प्रतिबंध की योजना सामान्य श्रीलंकाई मुसलमानों और दुनियाभर के मुसलमानों की भावनाओं को चोट पहुंचाने के रूप में काम करेगी।

श्रीलंका सरकार ने बुर्के पर प्रतिबंध लगाने के अपने फैसले पर यू-टर्न लेते हुए कहा कि इस प्रक्रिया में जल्दबाजी नहीं करेंगे और इस मामले पर सर्वसम्मति बनने के बाद ही फैसला किया जाएगा।

दरअसल ​पाकिस्तान के राजदूत ने श्रीलंका सरकार की योजना की आलोचना करते हुए कहा था कि सुरक्षा के नाम पर इस तरह के “विभाजनकारी कदम” न केवल मुसलमानों की भावनाओं को आहत करेंगे, बल्कि द्वीप राष्ट्र में अल्पसंख्यकों के मौलिक मानवाधिकारों के बारे में व्यापक आशंकाओं को भी मजबूत करेंगे।