चीन की हिमाकतों पर बोले मोहन भागवत, कहा इस लाइन पर लाने के लिए…

मोहन भागवत ने कहा कि श्रीलंका, बांग्लादेश, ब्रह्मदेश, नेपाल ऐसे हमारे पड़ोसी देश, जो हमारे मित्र भी हैं और बहुत मात्रा में समान प्रकृति के देश हैं, उनके साथ हमें अपने सम्बन्धों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने में अपनी गति तीव्र करनी चाहिए.

बता दें, इस साल जून में लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. इस कार्रवाई में चीन के भी काफी सैनिक हताहत हुए थे. तब से अब तक पूर्वी लद्दाख में जल्द से जल्द डिसएंगेजमेंट के लिए सभी प्रयास जारी है. चीन लगातार भारत पर दबाव बना रहा है लेकिन सेना पूरी मुस्तैदी से सीमा पर डटे हुए है. इसके अलावा कोर कमांडर स्तर की भी लगातार बातचीत चल रही है.

वहीं सेना के पराक्रम पर भागवत ने कहा कि हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अदम्य वीरता, हमारे शासनकर्ताओं का स्वाभिमानी रवैया तथा हम सब भारत के लोगों के दुर्दम्य नीति-धैर्य का परिचय चीन को पहली बार मिला है. हम सभी से मित्रता चाहते हैं, यह हमारा स्वभाव है. परन्तु हमारी सद्भावना को दुर्बलता मानकर अपने बल के प्रदर्शन से कोई भारत को चाहे जैसा नचा ले, झुका ले, यह हो नहीं सकता है. इतना तो अब समझ में आ जाना ही चाहिए.

भागवत ने आगे कहा कि भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर, खड़े होकर अपने स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय व वीरता का उज्ज्वल परिचय दिया. इससे चीन को अनपेक्षित धक्का लगा है. इस परिस्थिति में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा.

मोहन भागवत ने चीन पर निशाना साधते हुए कहा कि हम शांत हैं इसका मतलब यह नहीं कि हम दुर्बल हैं. अब चीन को भी इस बात को एहसास तो हो ही गया होगा. लेकिन ऐसा नहीं है कि हम इसके बाद लापरवाह हो जाएंगे. ऐसे खतरों पर नजर बनाए रखनी होगी.

विजयादशमी और स्थापना दिवस के मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने समस्त देशवासियों को संबोधित करते हुए उन्हें विजयादशमी की शुभकामनाएं दी हैं. इसके साथ ही चीन की हाल की गतिविधियों को लेकर उन्हें घेरा भी है.

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि कोरोना महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही, यह तो कहा ही जा सकता है. परंतु अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास किया वह सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है.