अखिलेश यादव ने तैयार किया ये नया फॉर्मूला , कहा – 2022 में करेंगे…

उत्‍तर प्रदेश में कांग्रेस भी इस बार नए प्रयोग की तैयारी में है और वह भी इस बार चुनाव में छोटे दलों से समझौता कर चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रही है.

कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने बताया कि अभी हमारी कोशिश पार्टी संगठन को ग्राम स्तर पर मजबूत करने की है, जिसे दिसंबर तक पूरा कर लिया जाएगा. इसके बाद गठबंधन को लेकर कोई बात करेंगे, लेकिन हमारी कोशिश जरूर है कि सूबे के जो भी छोटे दल हैं, उन्हें साथ लेकर चलें. कांग्रेस पहले भी छोटे दलों को सियासी तरजीह देती रही है.

बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ समझौता कर चुनाव मैदान में उतरे थे और अपनी सत्‍ता गवां दी थी. इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने मायावती के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा, लेकिन सपा को बहुत लाभ नहीं मिला. सपा सिर्फ पांच सीटों पर ही रह गई लेकिन बसपा को 10 सीटें जरूर मिल गईं. यही वजह है कि अखिलेश अब बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ चुनाव लड़ने के फॉर्मूले पर चल रहे हैं.

लोकसभा चुनाव में जनवादी पार्टी के संजय चौहान, सपा के चुनाव निशान पर चंदौली में चुनाव लड़कर हार चुक‍े हैं और वह भी अखिलेश यादव के साथ सक्रिय हैं. इसके अलावा अखिलेश ने सपा से विद्रोह कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाने वाले अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव की सीट पर 2022 में प्रत्याशी न उतारने की बात कह कर साफ कर चुके हैं कि उन्हें भी अडजस्ट किया जा सकता है.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने के फॉर्मूले को लेकर चल रहे हैं. अखिलेश यादव लगातार यह बात कह रहे हैं कि 2022 में बसपा और कांग्रेस जैसे दलों के साथ गठबंधन करने के बजाय छोटे दलों के साथ मिलकर लड़ेंगे.

इस कड़ी में सपा ने महान दल के साथ हाथ मिलाया है और हाल ही में हुए उपचुनाव में चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्‍ट्रीय लोकदल के लिए एक सीट छोड़ी थी, जिसके यह संकेत हैं कि आगे भी वह अजित सिंह के साथ तालमेल कर सकते हैं.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही अभी सवा साल का समय बाकी हो, लेकिन राजनीतिक दलों ने अपने-अपने सियासी समीकरण और गठजोड़ बनाने शुरू कर दिए हैं. बीजेपी के गठबंधन फॉर्मूले पर ही सूबे की प्रमुख विपक्षी पार्टियां चलती दिख रही हैं.

सपा-बसपा और कांग्रेस आपस में हाथ मिलाने के बजाय छोटे दलों के साथ हाथ मिला रही हैं. बीजेपी ने इसी रणनीति के तहत पिछले चुनावी में यूपी की सियासी जंग फतह की थी, अब देखना है कि विपक्षी पार्टियां क्या राजनीतिक गुल खिलाती हैं?