दौरान पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) व भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच जमकर झड़पें हुई थीं। इसी दौरान 14 मई को मूर्ति तोड़ने का आरोप टीएमसी व भाजपा ने एक-दूसरे पर लगाया था।
अब उसी स्थान यानी की कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज में नयी मूर्ति लगाई जा रही है। इसे की मौजूदगी में आज दोपहर में लगाया जाना है। ममता बनर्जी इस दौरान दोपहर 1 बजे ईश्वरचंद्र विद्यासागर को हरे स्कूल में श्रद्धांजलि भी देंगी। इसके बाद उनकी नयी मूर्ति का शिलान्यास करने कॉलेज तक पैदल जाएंगी।
वहीं नदिया के विद्यासागर कॉलेज में ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति को लेकर दो विद्यार्थी गुटों में प्रयत्न हुआ है। यहां के ऑल इंडिया तृणमूल स्टूडेंट कांग्रेस पार्टी (टीएमसीपी) वअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के बीच यह झड़प हुई है। इसके बाद टीएमसीपी ने आरोप लगाया है कि एबीवीपी कॉलेज पर कब्जा करना चाहती है।
बता दें कि 14 मई को कोलकाता में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी रोड शो के दौरान भड़की हिंसा के दौरान कॉलेज परिसर में स्थित महान दार्शनिक, समाज सुधारक व लेखक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़ दी गई थी। मूर्ति के तोड़े जाने के बाद टीएमसी व भाजपा आमने-सामने है।
तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने भाजपा पर मूर्ति तोड़े जाने का आरोप लगाया था। तो भाजपा ने यह आरोप टीएमसी पर लगाया था। इस घटना के बाद पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने अपने ट्विटर अकाउंट की प्रोफाइल फोटो बदलकर ईश्वरचंद्र विद्यासागर की तस्वीर को अपनी नयी प्रोफाइल फोटो लगाई थी।
जानें कौन हैं ईश्वरचंद्र विद्यासागर
– ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1820 को कोलकाता में हुआ था।
– विद्यासागर का जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के गरीब लेकिन धार्मिक परिवार में हुआ था।
– इनके बचपन का नाम भगवान चन्द्र बन्दोपाध्याय था।
– गांव के स्कूल से प्रारंभिक एजुकेशन लेने के बाद वह अपने पिता के साथ कोलकाता आ गए थे।
– पढ़ाई में अच्छे होने की वजह से उन्हें कई संस्थानों से छात्रवृत्तियां मिली थीं
– वह एक मशहूर समाज सुधारक, एजुकेशन शास्त्री व स्वाधीनता संग्राम के सेनानी थे।
– उन्हें गरीबों व दलितों का संरक्षक माना जाता था।
– स्त्री एजुकेशन व विधवा शादी के विरूद्ध ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने आवाज उठायी थी।
– वह बहुत ज्यादा विद्वान थे, जिसके कारण उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी गई थी।
– ईश्वरचंद्र के कोशिशों से 1856 में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ।
– उन्होंने अपने इकलौते पुत्र का शादी एक विधवा से ही किया। उन्होंने बाल शादी का भी विरोध किया।
– इन्होंने नारी एजुकेशन के लिए भी कोशिश किए व इसी क्रम में स्कूल की स्थापना की व कुल 35 स्कूल खुलवाए।
– इन्हें सुधारक के रूप में राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी माना जाता है।
– नैतिक मूल्यों के संरक्षक व शिक्षाविद विद्यासागर का मानना था कि अंग्रेजी व संस्कृत भाषा के ज्ञान का समन्वय करके भारतीय व पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है।