मध्यप्रदेश: इस बार भाजपा के सामने है ये बड़ी चुनौती

मध्यप्रदेश में इस बार भाजपा के सामने पिछले 15 वर्षों की सत्ता विरोधी लहर से निपटने की चुनौती है। किसानों की नाराजगी, एससी एसटी एक्ट पर हुए जातीय संघर्ष और बड़ी संख्या में बागियों की मौजूदगी ने परिस्थितियों को और मुश्किल बना दिया है। ऐसे में भाजपा को मुख्यमंत्री शिवराज के कार्यों और प्रधानमंत्री मोदी की बेहतर छवि का ही भरोसा है।

किसानों के लिए राज्य सरकार द्वारा लाई गई भावांतर योजना वरदान साबित होनी चाहिए थी। योजना के मुताबिक, राज्य सरकार द्वारा घोषित एमएसपी से जितना कम भाव किसानों को आढ़तियों से मिलेगा, उसका अंतर राज्य सरकार देगी। साथ ही मौसम से फसल खराबे पर किसानों को हुए नुकसान की पूर्ति फसल बीमा योजना के तहत की जानी थी। यानी किसानों को किसी भी स्थिति में नुकसान नहीं होना था।

फिर भी राज्य में किसानों की हालत जस की तस है। आढ़तियों ने दाम यह कहते हुए गिरा दिए कि नुकसान की भरपाई सरकार तो भावांतर योजना के तहत करेगी। लेकिन ये भरपाई होने में तीन से चार महीने लग जाते हैं और सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते हैं। फसल बीमा योजना की स्थिति भी ठीक नहीं है। कम ही किसान ही इसकी शर्तें पूरी कर पाते हैं और मुआवजा भी आधा अधूरा मिल रहा है।

एससी-एसटी एक्ट समाज में गहरी हुई खाई

दूसरी ओर एससी एसटी एक्ट को लेकर समाज में खाई गहरा गई है। इस मुद्दे पर ग्वालियर भिंड के इलाके में आंदोलन भड़क गया था। पहले दलित नाराज हुए तो शिवराज सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निपटने के लिए अध्यादेश लाई, जिसके बाद सवर्ण नाराज हो गए। उन्हें लगा कि वोटों के लिए भाजपा सरकार उनके अधिकारों का हनन कर रही है। फिर उन्होंने भी जबरदस्त आंदोलन छेड़ा।

जातीय संघर्षों में सात लोग मारे गए, जिनमें छह दलित थे। सवर्णों ने यहां अपनी पार्टी ‘स्पाक्स’ बना ली है और वे चुनाव लड़ रहे हैं। माना जा रहा है दलितों की नाराजगी और सवर्णों की बेरुखी भाजपा को भारी पड़ सकती है। इसके बावजूद यदि भाजपा जीतती है तो इसका श्रेय उसके बेहतर संगठन, मोदी और शिवराज की लोकप्रियता और कांग्रेस के कमजोर संगठन को जाएगा।