इस नेता के तेवर ने हाईकमान को भी झुकने पर किया मजबूर

दबंग तेवरों और लड़ाकू अंदाज वाली यह नेता जितनी मजबूती से विपक्ष पर हमला बोलती है उतनी ही ताकत से पार्टी के भीतर भी अपनी बात रखती है। उनके तेवर हाईकमान को भी झुकने पर मजबूर कर देते हैं।
भले ही वह राजघराने से हो लेकिन गरीब तबके तक पहुंचकर उन्हें गले लगाना हो या फिर बेधड़क उनके साथ बैठकर उन्हीं का अंदाज अपना लेना हो, इस नेता का कोई सानी नहीं दिखता। 2013 चुनाव में राजस्थान में भाजपा ने जिस अंदाज में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता वापसी की थी उसका सबसे ज्यादा श्रेय इसी नेता को गया था।

जी हां, हम बात कर रहे हैं राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया की जिन्होंने अपने तेवरों से राजस्थान की राजनीति में खासी हलचल मचाई है। विपक्ष के नेता सचिन पायलट को भी उनके बारे में कहना पड़ा था कि अगर भाजपा के भीतर अमित शाह को कोई चुनौती दे पाया तो वह हैं वसुंधरा राजे। इस बार राजस्थान विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का बहुत कुछ दांव पर लगा है। भाजपा की वापसी का दारोमदार वसुंधरा राजे पर ही है। राजघरानों की रानी ने किस तरह महलों से निकलकर सत्ता के सिंहासन पर काबिज हुईं आपको बता रहे हैं।

मुंबई में हुआ जन्म

वसुंधरा राजे का जन्म 8 मार्च 1953 को मुंबई में हुआ था। वह ग्वालियर घराने हैं। उनके पिता का नाम जीवाजीराव सिंधिया और माता का नाम विजयाराजे सिंधिया है। मध्यप्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे माधवराव सिंधिया वसुंधरा राजे के भाई थे। वसुंधरा का जन्म धौलपुर के एक जाट राजघराने में हुआ। उनकी शादी धौलपुर राजघराने के हेमंत सिंह के साथ हुई। मां पहले से ही राजनीति में रहीं और इसका असर उनपर भी पड़ा। वसुंधरा राजे शुरू से ही भाजपा के साथ जुड़ी रहीं और सीएम पद तक का सफर तय किया।

वसुंधरा राजे का सियासी सफर 1984 से शुरू हुआ। इसी साल उन्हें भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया। साल 1985 में उन्हें भाजपा युवा मोर्चा का उपाध्यक्ष बनाया गया और 1987 में राजस्थान प्रदेश भाजपा का उपाध्यक्ष। इसके बाद भी वसुंधरा राजे ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1991 में उन्होंने झालावाड़ से लोकसभा चुनाव जीता। 1998-1999 में उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें विदेश राज्य मंत्री बनाया गया।

2003 में बनीं मुख्यमंत्री

वसुंधरा राजे – फोटो : वसुंधरा राजे फेसबुक पेज
वसुंधरा राजे का सियासी सफर परवान चढ़ता रहा और जल्द ही उनकी राज्य की राजनीति में वापसी हुई। राजस्थान के बड़े नेता भैरो सिंह शेखावत जब उपराष्ट्रपति बने तो वसुंधरा को राजस्थान भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। भाजपा ने वसुंधरा राजे को 2003 में राजस्थान के सीएम पद की कमान सौंपी। वह राजस्थान की पहली महिला सीएम बनीं। 2013 में भी उन्होंने सीएम पद की कमान संभाली। इस बार भी भाजपा ने उन्हीं पर दांव लगाया है।

वह पहली बार 1985 में धौलपुर से विधायक चुनी गईं। 2003-08, 2008-13 और 2013 से 14वीं विधानसभा में झालरापाटन से विधायक रहीं। इस बार भी वसुंधरा राजे इसी सीट से चुनाव लड़ रही हैं। इसके अलावा वह पांच पर सांसद भी रहीं। वह 9वीं लोकसभा में 1989-91, 10वीं लोकसभा में 1991-96, 11वीं लोकसभा में 1996-98, 12वीं लोकसभा में 1998-99 और 13वीं लोकसभा में 1999-03 तक सांसद रहीं। 2003 में राजस्थान का सीएम बनने के बाद से वह यहीं की होकर रह गईं और भाजपा का झंडा मजबूती से थामे हुए हैं।

वसुंधरा राजे की छवि एक आक्रामक नेता के तौर पर रही है जो न सिर्फ विपक्ष पर करारा हमला बोलती हैं बल्कि पार्टी के भीतर भी अपनी बात मजबूती से रखती हैं। अक्सर मीडिया में ऐसी खबरें आई हैं कि उन्होंने हाईकमान को अपने बातें मनवाई हैं। पिछले कुछ समय में दिल्ली में हाईकामान के साथ लगातार उनकी बैठकों से इस चर्चा को बल मिला था कि कुछ खटपट चल रही है, लेकिन हर बार वसुंधरा राजे किसी विजेता की तरह बाहर निकलीं।

चाहे बात प्रदेश अध्यक्ष को बनाए रखने की हो या अपने करीबियों को टिकट देने की, वह हर बार विजेता ही साबित हुई हैं। संघ के साथ भी उनके मनमुटाव की खबरें आईं, लेकिन उनकी सत्ता कायम रही। हालांकि, इस बार राजस्थान में कई मंत्रियों और विधायकों के टिकट काटे गए हैं, उससे पता चलता है कि टिकट वितरण में उनका बहुत ज्यादा दखल नहीं रह पाया।

बहरहाल, वसुंधरा राजे के सामने इस बार बेहद मुश्किल चुनौती है। राज्य में भाजपा से लोगों की नाराजगी साफ नजर आती है। कई मुद्दों को लेकर राजपूत समाज भी उनसे नाराज नजर आ रहा है। वसुंधरा के सामने इन्हें मनाने की चुनौती भी है। उन्हें इस भ्रम को तोड़ना है कि राजस्थान में सरकार की वापसी नहीं होती। अगर वह इस बार भाजपा की वापसी करवा देती हैं तो उनका नाम राजस्थान के इतिहास में अमर हो जाएगा।