नहीं रहीं ग्लो ऑफ होप की नायिका

‘ग्लो ऑफ होप’ (आशाओं से भरा चमकता लैंप) हाथ में लेकर पेंटिग बनवाने वाली गीता उपलेकर का 102 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. महाराष्ट्र के मशहूर चित्रकार एसएल हलदणकर ने अपनी ही बेटी की यह पेंटिंग बनाई थी जो बहुत मशहूर हुई थी. पश्चिमी महाराष्ट्र के कोल्हापुर में उन्होंने अपनी बेटी के घर पर अंतिम सांसें लीं.

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‘वुमन विद द लैंप’ के नाम से मशहूर गीता की यह पेंटिंग ने देशभर में खूब सुर्खियां बटोरी थीं. यह पेंटिंग अभी मैसूर के जगनमोहन पैलेस में जयचामा राजेंद्र आर्ट गैलरी में रखी है.

गीता जब 100 वर्ष की हुई थीं, तब उन्होंने एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया था कि उनके पिता ने उनकी यह तस्वीर मैसूर की जयचामा राजेंद्र आर्ट गैलरी को महज 300 रुपए में बेची थी. बाद में इस पेंटिंग की मूल्य आठ करोड़ रुपये लगाई गई थी.

फ्रांस का वह कला प्रशंसक इसे किसी भी हाल में खरीदना चाहता था  उसने 8 करोड़ रुपए में खरीदने का प्रस्ताव दिया था लेकिन इसकी खूबसूरती को देखते हुए इसे बेचा नहीं गया.

इस पेंटिंग को बनाने के पीछे की कहानी भी बहुत ज्यादा दिलचस्प थी. उन्होंने लगभग अपने दिमाग पर जोर देते हुए याद करते हुए उस दिन को कुछ ऐसे बयां किया था. वह दीपावली की रात थी, चारों ओर दिए जगमगा रहे थे.

दिवाली की रात तैयार की थी पिता ने यह तस्वीर
हम भाई बहन भी घर के आंगन को रंगोली  दियों से सजाने की तैयारी कर रहे थे. दीपावली का एक अजीब ही उत्साह होता है. मैंने झटपट मां की नयी वाली साड़ी पहन ली थी. उसके बाद पीतल का बड़ा दीया जिसे महाराष्ट्र में समई बोला जाता है, जलाकर उसे ले जा रही थी, तभी पिताजी ने मुझे देख लिया.

उन्होंने मेरी साड़ी अच्छा की  कहा- कुछ देर रुको, तुम्हारी तस्वीर बनानी है. फिर उन्होंने मुझे पोज बनाने के लिए बोला  करीब साढ़े तीन घंटे तक स्केच तैयार करते रहे. तीन दिन बाद जब यह पेंटिंग पूरी तरह तैयार हुई तो मेरी आंखें अपनी तस्वीर को निहारती ही रहीं. मन ही नहीं भर रहा था.‘ उस समय मैं 29 वर्ष की थी.

गीता ने अपने इस साक्षात्कार में बताया था कि लोग वर्षों तक इस पेंटिंग को राजा रवि वर्मा की पेंटिंग समझते रहे जबकि इस पेंटिंग की लड़की मैं हूं  इसे बनाने वाले मेरे पिता एसएस हलणकर. खुद गीता को पेंटिंग की बहुत ज्यादा बारीकियां पता थीं.

उन्होंने बताया कि इस फोटो को रवि वर्मा की फोटो बताए जाने का कारण साड़ी की वो सिलवट है, उसका टैक्स्चर बहुत ज्यादा कुछ रवि वर्मा की शैली से मिलता-जुलता था. इसी भ्रम में कई लोगों ने मुझसे इस पेंटिंग को लेकर पूछताछ की थी. उन्होंने बताया था कि उनके पिता  वर्माजी की शैली करीब-करीब एक जैसी ही थी.