अब इस तरह से किया जाएगा कोरोना के मरीजो का उपचार , 30 मरीजों पर किया परीक्षण

डाक्टर गुलेरिया ने बताया, ‘‘बहरहाल, यह केवल अंतरिम विश्लेषण है व हमें ज्यादा विस्तृत आकलन करने की आवश्यकता है कि किसी उप समूह को प्लाज्मा थेरेपी से लाभ होता है। ’

 

उन्होंने बोला कि प्लाज्मा की भी सुरक्षा की जाँच होनी चाहिए व इसमें पर्याप्त एंटीबॉडी होनी चाहिए जो कोविड-19 रोगियों के लिए उपयोगी हों।

कोविड-19 पर बुधवार को तीसरे नेशनल क्लीनिकल ग्रैंड राउंड्स पर हुई परिचर्चा में प्लाज्मा थेरेपी का कोरोना वायरस से पीड़ित रोगियों पर होने वाले असर को लेकर चर्चा हुई।

उन्होंने बोला कि परीक्षण के दौरान एक समूह को मानक योगदान इलाज के साथ प्लाज्मा थेरेपी दी गई जबकि दूसरे समूह का मानक उपचार किया गया। दोनों समूहों में मौत दर एक समान रही व रोगियों की हालत में ज्यादा क्लीनिकल सुधार नहीं हुआ।

एम्स (AIIMS) के निदेशक डाक्टर रणदीप गुलेरिया (Randeep Guleria) ने गुरुवार को बताया कि कोरोना के एम्स के 30 मरीजों पर यह स्टडी की गई। लेकिन परीक्षण के दौरान प्लाज्मा थेरेपी का कोई ज्यादा लाभ नजर नहीं आया।

उपचार के इस ढंग के असर का आकलन करने के लिए एम्स में किए गए अंतरिम परीक्षण विश्लेषण में यह बात सामने आई है। इस उपचार के तहत कोरोना से अच्छा हो चुके मरीजों के ब्लड से एंडीबॉडीज लिया जाता है व कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज को चढ़ाया जाता है, ताकि उसकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को वायरस से लड़ने के लिए तुरंत मदद मिल सके।

कोरोना वायरस (Coronavirus) से अच्छा हो चुके मरीजों के प्लाज्मा थेरेपी (Plasma therapy) से कोरोना रोगियों का उपचार किए जाने से भी मौत दर में कमी नहीं आ रही है।