तुलसी का दर्शन करना माना जाता है शुभ, हो जाता है सभी पापों का नाश

जहां तुलसी कानन है, वहां लक्ष्मी और सरस्वती के साथ साक्षात भगवान जनार्दन प्रसन्नतापूर्वक विराजमान रहते हैं। जहां सर्वदेवमय जगन्नाथ भगवान विष्णु रहते हैं।

वहां लक्ष्मी और सरस्वती के साथ साक्षात भगवान जनार्दन प्रसन्नतापूर्वक विराजमान रहते हैं। इसलिए वह उत्तम स्थान देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।

उस श्रेष्ठ स्थान में जो जाता है वह भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम को प्राप्त करता है जो व्यक्ति स्नान करके उस पापनाशक क्षेत्र का मार्जन करता है वह भी पाप से मुक्त होकर स्वर्गलोक में जाता है। जो व्यक्ति तुलसी वृक्ष के मूल की मिट्टी से ललाट, कंठ, दोनों कान, दोनों हाथ, मस्तक, पीठ, दोनों बगल और नाभि पर उत्तम तिलक लगाता है, उस पुण्यात्मा को श्रेष्ठ वैष्णव समझना चाहिए।

जो व्यक्ति तुलसी पत्र का स्पर्श कर लेता है वह सभी पापों से मुक्त होकर उसी क्षण शुद्ध हो जाता है और अंत में देवों के लिए भी दुर्लभ विष्णुपद को प्राप्त करता है।

तुलसी का स्पर्श करना ही मुक्ति है और वही परम व्रत है। जिस व्यक्ति ने तुलसी वृक्ष की प्रदक्षिणा कर ली उसने साक्षात भगवान विष्णु की प्रदक्षिणा कर ली।

इसमें कोई संदेह नहीं है जो मानव भक्तिपूर्वक श्रेष्ठ तुलसी को प्रणाम करता है, वह भगवान विष्णु के सायुज्य को प्राप्त करता है और पुन: पृथ्वी पर उसका जन्म नहीं होता।

श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र में भगवान गदाधर के दर्शन करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वही तुलसीवृक्ष के दर्शन करने से प्राप्त होता है। वह दिन शुभ कहा गया है .

जिस दिन तुलसी वृक्ष का दर्शन होता है और तुलसी वृक्ष का दर्शन करने वाले व्यक्ति को कहीं से भी विपत्ति नहीं आती। जन्म जन्मांतर का किया अत्यंत निन्दित पाप भी तुलसी वृक्ष के दर्शन मात्र से नष्ट हो जाता है।

जिसे सुन कर मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। सभी लोगों के रक्षक, विश्वात्मा, विश्व पालक भगवान पुरुषोत्तम ही तुलसी वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

दर्शन, स्पर्श, नाम- संकीर्तन, धारण तथा प्रदान करने से भी तुलसी मनुष्यों के सभी पापों का सर्वदा नाश करती है। प्रात: उठकर स्नान करके जो व्यक्ति तुलसी वृक्ष का दर्शन करता है उसे सभी तीर्थों के संसर्ग का फल नि:संदेह प्राप्त हो जाता है।