शिवलिंग की परिक्रमा करते समय रखे इन बताओ का ध्यान, पूरे होंगे सब काम

सब कुछ सुचारु रूप से चल रहा था जब एक बार गन्धर्वराज भूलवश शिवलिंग की निर्मली यानि जल प्रवाहिका को लांघ गया। इसके परिणाम स्वरूप उसके अदृश्य होने की शक्ति समाप्त हो गई।

 

ये बात उसे पता नहीं चल सकी। जब दूसरे दिन वह पुष्प वाटिका में पुष्प लेने गया तो उसे पुष्प तोड़ते समय गुप्तचर ने उसे पकड़ लिया। उसने अदृश्य होने का प्रयास किया पर सफल न हो सका।

किसी तरह वह वहां से बच कर आने में सफल हुआ और अगले दिन सुबह पूजा के पश्चात उसने भगवान से इसका कारण पूछा। तब शंकर जी ने उसकी अदृश्य होने की शक्ति लुप्त हो जाने का रहस्य बतलाया आैर तब से ये कहा गया कि निर्मली लंघन कोर्इ ना करे।

निर्मली लांघने के दोष को लेकर एक दंतकथा है। पुष्पदत्त नाम का गन्धर्वों का एक राजा था। वह भगवान शंकर का अनन्य भक्त था। इस राजा की आदत थी कि वह भगवान शिव को प्रतिदिन पुष्प अर्पित करता था। उत्तम सुगंध वाले फूल लाने के लिए वह किसी की पुष्प वाटिका में जाया करता था और वहां से प्रतिदिन सुंदर-सुंदर फूल चुरा लाता था।

रोजाना फूलों की चोरी को लेकर वाटिका का माली काफी परेशान रहता था। उसे बगीचे में कोर्इ आते-जाते भी नहीं दिखार्इ देता था। उसने इस संबंध में बगीचे के स्वामी से बातचीत की आैर फूलों की चोरी को रोकने के लिए एक गुप्तचर की व्यवस्था करने के लिए कहा।

ताकि पता किया जा सके कि कौन बगीचे से अच्छे-अच्छे फूल चोरी करता है। इसके बाद भी चोरी होती रही, क्योंचकि पुष्प दत्ती को अदृश्यस होने की शक्‍ित प्राप्त थी।

मंदिरों में पूजा करते समय अक्संर लोग शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करने में कोई दोष नहीं है, लेकिन जहां तक संभव हो शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। दरअसल शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद वह जिस रास्ते से होकर बहकर जाता है .

उसे निर्मली कहते हैं। जहांसे निकल कर जल मीन में बने गड्डे से आगे जाता है। एेसे में यदि निर्मली ढंकी हो और गुप्त रूप से बनी हो तो पूरी परिक्रमा करने में कोर्इ दोष नहीं लगता, लेकिन एेसा ना हो तो फिर कठिनार्इ होती है।

शिवलिंग की निर्मली न लांघनी पड़े इसीलिए अर्ध-परिक्रमा की जाती है। जिन शिवालयों में निर्मली की समुचित व्यवस्था नहीं होती, जल साधारण खुली नालियों की तरह बहता है उसे कदापि नहीं लांघना चाहिए। इससे दोष लगता है।