अयोध्या जाना चाहते थे ये नेता, अचानक हुई थी मौत

1950 के दौरान बाबरी मस्जिद वाली स्थान पर भगवान राम  सीता की मूर्तियां रखने को लेकर टकराव हुआ था. उस घटना को मौजूदा विवाद, जिसका निपटारा उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को किया है, की जड़ें बोला जा सकता है.
मूर्तियों को लेकर अयोध्या में तनाव हो गया था. देश के पहले पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू अयोध्या जाना चाहते थे, लेकिन जा नहीं सके. उन्होंने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सीएम गोविंद बल्लब पंत से अपनी यात्रा को लेकर वार्ता भी की थी. हालांकि बाद में वे किन्ही व्यस्तताओं के चलते वहां नहीं जा पाए.

तत्कालीन जिला फैजाबाद के डीएम को लेकर जवाहरलाल नेहरू बहुत ज्यादा नाराज थे. नेहरू का मानना था कि डीएम केके नायर अच्छा तरह से कार्य नहीं कर रहे हैं. वे सरकार की बात को दरकिनार कर रहे हैं. नायर से बोला गया था कि वे मूर्तियों को मस्जिद से बाहर लाकर कहीं ओर स्थापित कर दें. इस पर नायर ने बोला था कि इससे दंगे फैल सकते हैं. अगर सरकार यह कार्य कराना चाहती है तो उनकी स्थान किसी दूसरे ऑफिसर को यहां तैनात कर दिया जाए.

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 23-23 दिसंबर 1949 की रात को यह समाचार आई कि बाबरी मस्जिद के अंदर राम  सीता की मूर्तियां रखी हैं. कुछ पुजारियों  भक्तों ने दावा किया कि ये मूर्तियां मस्जिद के अंदर अपने आप चमत्कारिक रूप से दिखाई दी हैं.

उनका बोलना था कि 1539 में एक मंदिर के स्थल पर मुगल शासक बाबर ने मस्जिद बनाई थी. कुछ दूसरे दावों के अनुसार, कोई रैकेट था, जिसने मस्जिद की पवित्रता खत्म कर वहां मूर्तियों को रख दिया. बाद में माता प्रसाद नाम के एक पुलिस कांस्टेबल ने 23 दिसंबर को बाबरी मस्जिद परिसर में अपने बयान दर्ज कराए.

उन्होंने एफआईआर में कहा, 50-60 अज्ञात लोगों के एक समूह ने मस्जिद में आकस्मित प्रवेश किया  उनकी पवित्रता को बेकार कर दिया. पुजारियों, भक्तों  कई लोकल समूहों में इसे लेकर खुशी मनाई गई. कुछ दिन बाद अयोध्या  विशेष रूप से संयुक्त प्रांत यानी यूपी में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया.उस समय कांग्रेस पार्टी के महान नेता गोविंद बल्लभ पंत संयुक्त प्रदेश के सीएम थे.

अयोध्या मुद्दे को लेकर नेहरू ने पंत को लिखा लेटर
तीन दिन बाद 26 दिसंबर को पंडित नेहरू ने अयोध्या टकराव पर जीबी पंत को एक टेलीग्राम भेजा. इसमें उन्होंने लिखा, मैं अयोध्या के घटनाक्रम से परेशान हूं. उम्मीद है कि आप पर्सनल रूप से इस मुद्दे को हल करने में रुचि लेंगे. कुछ मीडिया रिपोर्टों में कथित तौर पर बोला गया कि नेहरू ने प्रदेश सरकार को रामलला  सीता की मूर्तियों को बाबरी मस्जिद परिसर से बाहर स्थानांतरित करने का आदेश देने वाला एक नोट भी लिखा था.

नेहरू ने हिंदुस्तान के तत्कालीन गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी को लिखे अपने लेटर में अपनी यह चिंता दोहराई. नेहरू ने गवर्नर जनरल को बताया कि मैंने कल रात अयोध्या के बारे में पंत जी को लिखा है.पंत जी ने मुझे बाद में फोन भी किया. उन्होंने बोला कि वे बहुत चिंतित थे  पर्सनल रूप से इस मुद्दे को देख रहे हैं.

पंडित नेहरू का लेटर जो कि दिनांक 5 मार्च, 1950 को फैजाबाद जिला प्रशासन को भेजा गया था, उसमें नेहरू ने बोला कि डीएम अपनी ड्यूटी अच्छा तरह से नहीं कर रहे हैं. उस दौरान डीएम केके नायर, आईसीएस ने साफ तौर पर नेहरू के आदेश का पालन करने से मना कर दिया था. नेहरू ने अपने लेटर में लिखा, आप अयोध्या मस्जिद का जिक्र करते हैं. यह घटना दो या तीन महीने पहले घटी थी. मुझे इसका बहुत दुख हुआ है. एक डीएम ने गलत व्यवहार किया  प्रदेश सरकार ने इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.
दूसरी ओर, नायर ने प्रदेश सरकार के माध्यम से तत्कालीन पीएम के आदेश पर साफ तौर पर कार्य नहीं करने की बात कह दी. तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजे एक लेटर में नायर ने लिखा, अगर सरकार ने किसी भी मूल्य पर मूर्तियों को हटाने का निर्णय किया है तो मेरा अनुरोध है कि उससे पहले मुझे वहां से हटा दिया जाए. किसी दूसरे डीएम को वहां लगा दिया जाए. नायर ने यह भी दावा किया कि विवादित स्थल से मूर्तियों को हटाने से जनता को व्यापक पीड़ा होगी, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों की जान जा सकती है.

इस पृष्ठभूमि के विरूद्ध नेहरू ने जीबी पंत को लेटर भेजा.इसमें उन्होंने लिखा, वे अयोध्या जाने के लिए तैयार हैं. पांच फरवरी, 1950 को नेहरू ने पंत को कहा, अयोध्या टकराव का कश्मीर मामले सहित शेष हिंदुस्तान पर प्रभाव पड़ सकता है. मुझे खुशी होगी अगर आप अयोध्या की स्थिति से लगातार अवगत कराते रहेंगे. यदि आवश्यक हो तो मैं अयोध्या जाऊंगा.

नेहरू ने लिखा, यदि आपको लगता है कि मेरा आना जरुरी है तो मैं तारीख तय करने का कोशिश करूंगा, हालांकि मैं बहुत व्यस्त हूं. उनकी यह यात्रा कभी नहीं हो सकी. अयोध्या में सांप्रदायिक तनाव को शांत करने के लिए बाबरी मस्जिद के द्वार बंद कर दिए गए थे. जनता का प्रवेश वर्जित था. एक पुजारी को साल में एक बार राम लल्ला  सीता की मूर्तियों की पूजा करने की अनुमति थी.