पूर्व सीएम हरीश रावत के गांव मे हुआ ऐसा, 21 सालों में रह गयी एक तिहाई आबादी

पूर्व सीएम हरीश रावत के गांव ‘मोहनरी’ पर भी पलायन की मार पड़ी है। पिछले 21 सालों में गावं की आबादी एक तिहाई रह गई है। विकास और खुशहाली शहरों में बढ़ी, मगर पहाड़ के सुदूर गांवों की रौनक गायब होती चली गई। आम गांवों का हाल छोड़िए, मंत्री और मुख्यमंत्री जिन गांवों से निकले उन गांवों की तकदीर भी नहीं बदल पाई। बेरोजगारी, पलायन की समस्या को झेलते लोग स्तरीय शिक्षा और चिकित्सा के लिए तरस गए हैं।

रानीखेत से मोहनरी की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। 1980 में पहली बार सांसद चुने जाने पर हरीश रावत ने सांसद निधि से मोहनरी के लिए सड़क स्वीकृत कराई। गांव में सड़क तो पहुंच गई लेकिन रोजगार के साधन और अन्य सुविधाओं के अभाव में लोग चले गए।

आलम ये है कि वोटर लिस्ट में दर्ज 447 में से 250 मतदाता ही गांव में रहते हैं। इसमें भी महिलाओं और बुजुर्गों की ही संख्या ज्यादा है। गांव में 110 करीब महिलाएं हैं इसमें भी अधिकांश महिलाएं बुजुर्ग हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पैतृक गांव मोहनरी भी पलायन की मार से अछूता नहीं है। राज्य गठन के वक्त करीब एक हजार की आबादी वाले इस गांव की आबादी आज महज 300 रह गई है। इसमें भी ज्यादातर बुजुर्ग हैं। जो परिवार गांव में हैं, उनके दो से तीन सदस्य बाहर ही रहते हैं।