राजनीतिक दल के लिए यह बड़ी उपलब्धि, सात महीने में कानूनी रास्ते से तीनों अहम एजेंडे को पूरा कर साफ कर दिया ये रास्ता

क्या भाजपा का स्वर्णिम युग आ गया है..? बेशक हां। दरअसल, राम मंदिर निर्माण की सर्वस्वीकार्य राह बनते ही भाजपा ने अपने उन तीन सबसे अहम एजेंडों को लगभग पूरा कर लिया जिसके कारण पार्टी लंबे समय तक देश की राजनीति में अस्पृश्य भी मानी जाती थी और कहीं न कहीं उन्हीं तीन मुद्दों के अधूरा रहने के कारण भाजपा कई बार अपनों के निशाने पर भी रही। लेकिन यह सच है कि इन्हीं तीन मुद्दों के कारण पार्टी दो से लेकर 303 तक की यात्रा भी पूरी कर सकी है।

किसी भी राजनीतिक दल के लिए यह बड़ी उपलब्धि है कि महज सात महीने में कोर एजेंडा पूरा हो गया। पहले तीन तलाक के जरिए समान नागरिक संहिता की ओर कदम बढ़ा है और जिस तरह कोर्ट की ओर से सरकार को याद दिलाया जा रहा है उसमें मुमकिन है कि इस दिशा में ठोस कदम बढ़ें। वहीं अनुच्छेद 370 को हटाकर कश्मीर का औपचारिक रूप से भारत में विलय और अब कोर्ट के जरिए शांतिपूर्ण माहौल में राम मंदिर के निर्माण की आकांक्षा पूरी।

1980 में बनी भाजपा चार साल बाद पहला लोकसभा चुनाव लड़ी थी और दो सीट तक सीमित रह गई थी। उसके बाद कई चुनाव लड़ी लेकिन 1991 में राम मंदिर चुनाव घोषणापत्र में शामिल किया गया और भाजपा सौ के आंकड़े से ऊपर आ गई। 1996 में पहली बार भाजपा संसद में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।

उस चुनाव से लेकर 2019 तक लगातार राम मंदिर भाजपा के घोषणापत्र में शामिल ही नहीं रहा बल्कि चुनाव प्रचार में ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ जैसे नारे की धूम रही। हर घोषणापत्र में शब्दों का बदलाव होता रहा। घोषणापत्र में यह भी बताया गया कि राम मंदिर निर्माण की चाह न सिर्फ देश में है बल्कि विदेश में रहने वाले भारतीयों के दिलों में भी है और भाजपा इसके लिए हरसंभव रास्ते की तलाश करेगी।

भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा भी निकाली और इसी बीच बाबरी मस्जिद ध्वंस भी हुआ। वह वाकया भाजपा के लिए थोड़ा असहज था और इसीलिए उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी ने मस्जिद ध्वंस को ‘राष्ट्रीय शर्म’ करार दिया था। लेकिन उसी स्थल को राम का जन्मस्थान मानते हुए राम मंदिर निर्माण की आकांक्षा में कभी कमी नहीं आई। भाजपा सीधे तौर पर तो आंदोलन से दूर रही लेकिन संघ परिवार ने इसे हमेशा गर्म रखा। अब वह एजेंडा पूरा होने को है। केंद्र सरकार को ही ट्रस्ट बनाकर मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी दी गई है।

वैसे भी 2014 के बाद से भाजपा की राजनीति बदली है। सबका साथ, सबका विकास में अब सबका विश्वास भी जोड़ा गया है। सामाजिक विकास पर सरकार का जोर बढ़ा है वहीं पिछले सात महीने में कानूनी रास्ते से तीनों अहम एजेंडे को पूरा कर यह भी साफ कर दिया है कि उनके हर वादे पूरे होंगे।

स्वर्णिम काल के लिए हालांकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दूसरी शर्त रखी है। उनका कहना है कि जब भाजपा प्रतिनिधि हर राज्य और हर पंचातय में मौजूद होंगे तब वह काल आएगा लेकिन पिछले सात आठ महीनों में जिस तरह पार्टी ने सबसे दुरुह मसले को सुलझाकर सामाजिक, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मुद्दों पर ठोस कदम बढ़ाया है वह स्वर्णिम से कुछ कम नहीं है।

सबसे बड़ी बात यह है कि इन तीनों मुद्दों पर अब देश में एकजुटता है। भाजपा के सहयोगी दल ही नहीं विपक्ष के लिए भी अब राम मंदिर, कश्मीर और बहुत हद तक तीन तलाक विवादित मुद्दा नहीं रहा। यह भाजपा की विचारधारा और मुद्दे को सरल व कानूनी रूप से पेश करने की जीत मानी जाएगी।