तालिबान अफगानिस्तान के शहरों पर तेजी से कर रहा कब्जा , अब काबुल की ओर नज़र

भारत के साथ अफगानिस्तान के ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं. भारत ने वहां सड़कें, बांध, इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन लाइनें, बिजली स्टेशन, स्कूल और अस्पताल बनवाए हैं. काबुल में संसद भवन भी भारत ने बनवाया है.

 

इसमें 9 करोड़ डॉलर का खर्च आया था. 23 हजार करोड़ रुपये से अधिक का भारतीय निवेश अफगानिस्तान में होने का अनुमान है. वहां के सभी 34 प्रांतों में कोई न कोई परियोजना ऐसी जरूर है, जिसमें भारत का पैसा लगा है.

218 किलोमीटर लंबे जरंज-डेलारम हाईवे प्रोजेक्ट का निर्माण भी भारत ने ही करवाया है. इस हाईवे पर करीब 13 करोड़ डॉलर के खर्च का अनुमान है. यही नहीं भारत ने उज्बेकिस्तान की सीमा से लेकर काबुल तक पावर ट्रांसमिशन लाइनें बिछाने में भी मदद की है. ये लाइनें हिंदूकुश पर्वतमाला से होकर गुजरती हैं. इन लाइनों की जिम्मेदारी नॉर्थ ईस्ट पावर सिस्टम के पास है.

काबुल में बच्चों के एक अस्पताल को दोबारा बनवाने में भारत ने मदद दी थी. भारत ने इसे 1972 में तैयार करवाया था. भारत ने बदख्शां, बाख, कंधार, खोस्त, कुनार, निमरुज, नूरिस्तान और पक्तिया जैसे अफगानिस्तान के सीमावर्ती प्रांतों में भी क्लिनिक बनवाए हैं.

कई दिनों से जारी लड़ाई पर अफगान सुरक्षा बल और सरकार कोई टिप्पणी करने को तैयार नहीं हैं. अफगानिस्तान में जारी खूनी संघर्ष के बीच भारत को काफी नुकसान हो रहा है. यही नहीं भारत के सामने हजारों करोड़ रुपये के निवेश को बचाने की चुनौती भी है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और संस्थानों के पुनर्निर्माण में भारत अब तक तीन अरब डॉलर से अधिक का निवेश कर चुका है.

अफगानिस्तान (Afghanistan) में हर दिन हालात बिगड़ते जा रहे हैं. तालिबान अफगानिस्तान के शहरों पर तेजी से कब्जा जमा रहा है. अब तक तालिबान ने अफगानिस्तान के तीसरे सबसे बड़े शहर और काबुल के पास रणनीतिक प्रांतीय राजधानी कंधार पर कब्जा कर लिया है. अब उसकी नजर काबुल पर है.