रक्षाबंधन पर करे ये छोटा सा काम, जीवन में मिलेगी सफलता, दूर होगी सारी बाधा

अब से सिर्फ राक्षस राज की ही पूजा होगी. राक्षस की इस आज्ञा के बाद धार्मिक कार्यों पर पूरी तरह से रोक लग गई. धर्म की हानि होने से देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी.

पराजित होने के बाद देवराज इंद्र अपने देवगणों को लेकर अमरावती नामक स्थान पर चले गए. इंद्र के जाते ही दैत्यराज ने तीनों लोकों पर अपना राज स्थापित कर लिया. इसके साथ ही राक्षसराज ने यह मुनादी करा दी की कोई भी देवता उसके राज्य में प्रवेश न करे और कोई भी व्यक्ति धर्म-कर्म के कार्यों में हिस्सा न ले.

धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षाबंधन की कथा सुनाई थी जो इस प्रकार है. एक बार राक्षसों और देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया जो करीब 12 वर्षों तक चलता रहा. कोई भी कम नहीं पड़ रहा था. एक समय ऐसा भी आया जब असुरों ने देवराज इंद्र को भी पराजित कर दिया.

रक्षाबंधन की कथा भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्टिर को सुनाई थी. महाभारत काल में रक्षा सूत्र का वर्णन आता है. एक बार द्रौपदी ने अपने आंचल का टुकड़ा फाड़कर भगवान श्रीकृष्ण की उंगली में बांध दिया था.

जब उन्हें चोट लगी थी. इसके बाद श्रीकृष्ण ने उन्हें रक्षा का वचन दिया था और इसी के चलते भगवान श्रीकृष्ण ने चीर हरण के समय उनकी रक्षा की थी.