इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को शक के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता है। इसके अलावा किसी भी व्यक्ति के घर की तलाशी ली जा सकती है और उसे व्यवधान डालने से रोकने के लिए बल प्रयोग भी हो सकता है।
यह कानून सुरक्षाबलों को वाहन की तलाशी की भी छूट देता है। इस कानून से सुरक्षाबल और सेना को कई अन्य छूटें भी मिलती हैं, जिसकी वजह से इसे अधिकारियों का कवच भी कहा जाता है। हालांकि, केंद्र सरकार इन शक्तियों में हस्तक्षेप कर सकता है।
भारतीय संसद ने आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर ऐक्ट, 1958 एक फौजी कानून है। इसे ऐसे क्षेत्रों में लागू किया जाता है, जहां तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। इसके तहत कानूनन सुरक्षाबल और सेना को कुछ विशेष अधिकार और शक्तियां दी जाती हैं.
ताकि आम लोगों के लिए सुरक्षा के दायरे को बढ़ाया जा सके। इस कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति कानून तोड़ता है और अशांति फैलाता है, तो उस पर मृत्यु तक बल का इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही हथियारबंद हमले के शक पर भी किसी ढांचे को तबाह किया जा सकता है।
ताजा आदेश पिछले साल 28 अगस्त को इसी तरह के कदम का विस्तार है जब राज्य को छह महीने के लिए ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया गया था। पूर्वोत्तर में सुरक्षा बलों पर हमले और असम के कई हिस्सों से बड़ी मात्रा में हथियारों व गोला-बारूद की बरामदगी को इस कदम का कारण बताया गया है।
ज्ञात हो कि राज्य के कार्बी आंग्लांग क्षेत्र के पांच अलग-अलग विद्रोही संगठनों के 1040 आतंकवादियों द्वारा मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की मौजूदगी में हथियार जमा कराए जाने के एकदिन बाद यह फैसला लिया गया था। वर्तमान में असम के अलावा, ‘अफस्पा’ नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लागू है।
अप्रैल-मई में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी ने बुधवार को जारी एक आदेश के तहत “सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 की धारा 3 के तहत प्रदत्त अधिकारों के अनुसार, 27 फरवरी से अगले छह महीने के लिए पूरे राज्य को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित कर दिया है।
असम के राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी ने 27 फरवरी से अगले छह महीने के लिए पूरे राज्य को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया है। चुनाव से पहले राज्यपाल द्वारा ‘अफस्पा’ के तहत ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया गया।
‘अफस्पा’ सुरक्षा बलों को तलाशी अभियान चलाने और किसी को भी बिना वारंट गिरफ्तार करने की अनुमति देता है। ‘अफस्पा’ के प्रावधान पूर्वोत्तर के केवल सात राज्यों में लागू हैं।