कोरोना के इलाज में अब इस्तेमाल होगा ये, मरीजों के साथ किया जाएगा…

अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों में डायग्नोसिस के तीन दिनों के भीतर प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन किया गया उनमें से 8.7 प्रतिशत की मृत्यु सात दिनों के अंदर हो गई जबकि डायग्नोसिस के चार दिन बाद इसे पाने वालों के बीच सात दिन में मृत्यु दर 11.9 प्रतिशत थी. 30 दिनों बाद दूसरे समूह के 26.7 फीसदी की तुलना में पहले समूह में 21.6 फीसदी लोगों की मौत हुई.

 

प्लाज्मा पर सबसे बड़ा अध्ययन मेयो क्लीनिक की तरफ से किया गया था जिसका मुख्यालय रोचेस्टर में है और इसे जैव अनुसंधान संबंधी अमेरिकी एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने प्रायोजित किया था.

इसने अप्रैल से जून के बीच 35,322 मरीजों को नामांकित किया और गंभीर कोविड-19 वाले मरीजों की मृत्यु दर पर इस इलाज के असर का अध्ययन करने की कोशिश की.

यद्यपि, इसे व्यापक रूप से प्रभावी माना जा रहा है. शुरुआती डाटा से पता चलता है कि बीमारी के शुरुआती चरण में इस्तेमाल से इसके नतीजे आशाजनक रहे हैं. भारत में अधिकांश हिस्सों समेत दुनियाभर के अस्पतालों में अंतिम उपाय के तौर पर मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का नियमित इस्तेमाल किया जा रहा है.

हालांकि, वैज्ञानिकों ने इस इलाज को लेकर आगाह किया है. प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन को अभी तक रैंडम आधार पर नियंत्रित परीक्षणों में खरा नहीं माना गया है जिसे किसी भी दवा, टीके और इलाज को वैज्ञानिक आधार पर प्रामाणिक साबित करने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्तर का मानक माना जाता है.

अमेरिकी दवा विनियामक प्राधिकरण, फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने रविवार को कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी के आपातकालीन इस्तेमाल को मंजूरी दे दी.

यह स्वास्थ्य लाभकारी प्लाज्मा रक्त में एंटीबॉडी वाला वह हिस्सा है जिसे ठीक हो चुके मरीजों से लेकर बीमार लोगों का इलाज करने में इस्तेमाल किया जाता है.