लॉकडाउन के दौरान पैदल घर के लिए निकले श्रमिक भाइयों के लिए नरेंद्र सिंह तोमर ने कही ये चौका देने वाली बात

16 अप्रैल को भारत सरकार के मुताबिक देश में 325 ज़िले ऐसे थे जहां कोरोना संक्रमण का एक भी मामला नहीं था. अब सिर्फ़ 168 ज़िले ही ऐसे हैं जहां कोरोना संक्रमण नहीं पहुंचा है. हमने केंद्रीय मंत्री से पूछा कि ग्रामीण भारत में स्थिति कितनी गंभीर है और सरकार की योजना क्या है?

उन्होंने कहा, “हां ये सही है कि कोविड-19 मुक्त ज़िलों की संख्या कम हुई है लेकिन जब चीज़ें खुलेंगी तो संक्रमण के मामले भी बढ़ेंगे. इसमें किसी को चौंकना नहीं चाहिए. हमने स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता भी बढ़ाई है.”

जब उनसे पूछा गया कि पहले चरण का लॉकडाउन घोषित करते वक़्त सरकार को प्रवासी संकट का अंदाज़ा हो जाना चाहिए था और क्या सरकार में इस पर चर्चा हुई है तो उन्होंने कहा, “सरकार को हमेशा से पता था और सरकार को पूरी जानकारी है कि बेहतर आर्थिक परिस्थितियों के लिए लोग एक इलाक़े से दूसरे इलाक़े मे जाते हैं ये स्वभाविक है कि जब लॉकडाउन की स्थिति होगी तो लोग असुरक्षित महसूस करेंगे और अपने घर जाना चाहेंगे. और ऐसा ही हुआ.

भारत के कृषि, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा है कि लॉकडाउन के दौरान पैदल ही या साइकिलों पर अपने घरों की ओर निकलने वाले श्रमिक भाई थोड़े अधीर हो गए थे.

लेकिन क्या जिस तादाद में लोगों की मौत हुई और जितनी परेशानियां उन्हें उठानी पड़ी यह इस बात का सबूत नहीं है कि योजना बनाने और उसे लागू करने में कमियां रहीं?

प्रवासियों की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को लिखा था, “निश्चित तौर पर इतने बड़े संकट में कोई ये दावा नहीं कर सकता कि किसी को कोई तकलीफ या असुविधा न हुई हो. श्रमिक, प्रवासी मजदूर भाई-बहन, छोटे-छोटे उद्योगों में काम करने वाले कारीगर, पटरी पर सामान बेचने वाले आदि लोगों ने असीमित कष्ट सहा है. इनकी परेशानियों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं.”

उदाहरण के तौर पर 28 मार्च को समाचार एजेंसी पीटीआई ने ख़बर दी कि उत्तर प्रदेश सरकार ने दिल्ली की सीमा पर एक हज़ार बसें मज़दूरों को लेने भेजी हैं. इस आदेश के बाद कई हज़ार लोग बस अड्डों पर इकट्ठा हो गए लेकिन उन्हें बसे नहीं मिल सकीं. इससे जुड़ी ख़बरें बीबीसी में भी प्रकाशित हुईं थीं.

जब नरेंद्र सिंह तोमर से पूछा गया कि सरकार ने मज़दूरों के खाते में सीधे पैसा क्यों नहीं भेजा गया और चरणबद्ध शटडाउन क्यों नहीं किया गया जिससे प्रवासियों का पलायन रुक सकता था तो उन्होंने कहा, ‘ये उम्मीद रखना कि सरकार कुछ करेगी स्वभाविक ही है और केंद्र और राज्यों सरकारें उनके लिए जो कर सकती थीं किया गया है.’

26 मार्च को भारत सरकार ने बीस करोड़ महिलाओं के जन धन खातों में तीन महीनों के लिए पांच सौ रुपये प्रतिमाह भेजने की घोषणा की थी. ये कैश ट्रांसफर जून माह में खत्म हो रहा है.

क्या इस योजना को आगे बढ़ाया जाएगा? तोमर ने कहा, “हमारी मार्च 26 की घोषणा कई घोषणाओं का संकलन थी. जब लोगों को आलोचना करनी होती है तो वो कई एक बिंदू पकड़ लेते हैं.लोग अधिक पैसा मांग सकते हैं लेकिन जहां उनकी अपनी सरकारें हैं वहां वो कुछ नहीं देते. कांग्रेस उन राज्यों में पैसा क्यों नहीं दे रही है जहां उसकी सरकारे हैं.? अब तीसरी किश्त जाने ही वाली है. आर्थिक गतिविधियां शुरू हो रही हैं, हम कोविड बीमारी से बाहर निकल रहे हैं, ऐसे में सरकार सही वक़्त पर परिस्थितियों को देखकर फ़ैसला लेगी.”