चीन से तनातनी के बीच भारत ने शुरू किया ये, भारी संख्या में पहुच रही सेना

पिछले महीने लद्दाख से सैन्य वापसी का पहला चरण, पैंगोग झील क्षेत्र में, सफलतापूर्व पूरा होने के बाद 25 फरवरी को एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच करीब 75 मिनट की बातचीत हुई थी.

इसमें नई दिल्ली ने कहा कि इस क्षेत्र में सैन्य बलों के बीच तनाव को पूरी तरह खत्म करने के लिए टकराव वाले सभी इलाकों से सेना की वापसी जरूरी है, साथ ही जोड़ा ‘शांति और सौहार्द बहाली की दिशा में आगे बढ़ने के साथ द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति के लिए उपयुक्त स्थितियां कायम करेंगे.’

यह कदम अप्रैल-मई 2020 में शुरू होकर करीब एक साल तक चले गतिरोध के बाद भारत और चीन के लद्दाख से अपनी सेनाएं हटाए जाने की दिशा में आगे बढ़ने के बाद उठाया गया है.

गतिरोध के बीच भारत अपने इस रुख पर अडिग था कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द बहाल हुए बिना चीन के साथ सामान्य व्यापार और कारोबारी रिश्ते जारी नहीं रह सकते हैं-जैसा कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्पष्ट किया था. सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ हफ्तों के दौरान राजनयिक वार्ताओं के दौरान एफडीआई प्रस्तावों पर चर्चा हुई है.

अप्रैल 2020 में भारत ने एक आदेश जारी किया था जिसके तहत पड़ोसी देश अगर देश में निवेश करना चाहें तो इसके लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य था. यह आदेश मुख्य रूप से कोविड महामारी के बीच चीनी कंपनियों का दबदबा रोकने के उद्देश्य से जारी किया गया था. हालांकि. चीन की तरफ से आए प्रस्तावों को मंजूरी दी जा रही है, लेकिन सूत्रों ने कहा कि आदेश में कोई बदलाव नहीं किया गया है.

पहचान न बताने की शर्त पर वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हमने चीन से आए एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी की प्रक्रिया शुरू कर दी है. रणनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों से जुड़े प्रस्तावों को छोड़कर बाकी को हम तेजी के साथ मंजूर कर रहे हैं.’

लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनातनी में आ रही कमी के बीच नई दिल्ली ने बीजिंग की ओर से निवेश से जुड़े कुछ प्रस्तावों को ‘सावधानी’ के साथ मंजूरी पर विचार करना शुरू कर दिया है. विभिन्न सूत्रों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी.

सूत्रों ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार चीनी निवेश प्रस्तावों को ‘गति देने’ की योजना बना रही है, जो मुख्यत: विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित हैं. साथ ही जोड़ा कि इसके पीछे विचार ‘धीरे-धीरे और स्थिरता के साथ आर्थिक संबंधों को फिर से बहाल करना है.’