पश्चिम बंगाल में नेताओ ने की ताबड़तोड़ रैलियां, लाउडस्पीकर से हर तरफ हो रहा…

साल 2011 के चुनाव के दौरान भी वोटरों के बीच चुप्पी थी, लेकिन इस तरह की नहीं. उन दिनों लेफ्ट के नेता वोटरों को अपने साथ बनाए रखने के लिए जमकर मेहनत कर रहे थे.

 

इसके बावजूद लोग बदलाव की उम्मीद में ममता बनर्जी के लिए आवाज़ें बुलंद कर रहे थे. लोगों को उन दिनों उम्मीद थी कि ममता लेफ्ट के 34 साल की सत्ता को उखाड़ फेंकेगी. उन दिनों तृणमूल कांग्रेस का नारा- चुप चाप फूले छाप’ खासा लोकप्रिय हुआ था.

वरिष्ठ पत्रकार सुबीर भौमिक इस चुप्पी का मतलब समझाते हुए कहते हैं, ‘इस बार चुनाव का नतीजा क्या होगा इसको लेकर लोग पक्के नहीं है. इसलिए वे चुप रहना पसंद करते हैं.

दरअसल बंगाल में राजनीतिक प्रतिशोध की परंपरा रही है. लिहाजा इससे भी लोग चिंतित रहते हैं. चुप्पी का मतलब है कि लोग गुस्से में हैं और बदलाव चाहते हैं.

ये थोड़ा असामान्य है. बंगालियों को बात और बहस करना खासा पसंद है. पहले बस स्टॉप से ​​लेकर चाय के स्टॉल, चमचमाते शॉपिंग मॉल से लेकर पार्क तक, और ट्रेन से लेकर होटल तक हर जगह वो राजनीतिक बहस करते दिख जाते थे.

ऐसा नहीं है कि वोटरों ने एकाएक चुप्पी साध ली है. दरअसल बंगाल में चुनाव को लेकर अलग माहौल है. यहां वोटिंग के दौरान लोगों को हिंसा का डर सता रहा है. लोगों को इस बात का भी डर लग रहा है कि अगर वो किसी नेता को वोट नहीं देंगे तो फिर उनके खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई भी की जा सकती है.

पश्चिम बंगाल के चुनावी (Bengal Assembly Election 2021) अखाड़े में हर तरफ शोरगुल है. हर पार्टी के नेता ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं. एक दूसरे पर भाषण के जरिये निशाना साध रहे हैं.

लाउडस्पीकर पर हर तरफ चुनावी प्रचार हो रहा है. लेकिन बंगाल के वोटर चुप हैं. वो किसे वोट देंगे या फिर इस बार किसका पलड़ा भारी है इसको लेकर वोटर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. लोग कुछ भी कहने से हिचकिचा रहे हैं.