उत्तराखंड में मनरेगा से इतने लोगो को ही मिल रहा रोजगार, मजदूरी 50 दिन भी नहीं

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया। गरीब तबका इससे अब तक नहीं उबर सका है। सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाएं भी इन लोगों के काम नहीं आ रही हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अभियान (मनरेगा) भी ऐसी ही एक योजना है जो चल तो रही है मगर, लाभ उतना नहीं मिल रहा जितना सरकार दावा करती है।

उत्तराखंड में मनरेगा से प्रति परिवार को औसतन 40 से 50 दिन ही रोजगार मिल रहा है जबकि, केवल 3 से 5 फीसदी लोग ही ऐसे हैं, जो 100 दिन की मजदूरी पा रहे हैं। इसकी पुष्टि खुद ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार के आंकड़े कर रहे हैं।  मनरेगा योजना से ग्रामीणों को 100 दिन रोजगार मिलने की बात अब बेईमानी सी लग रही है।

सुनने पर तो लगता है कि इस योजना से जुड़ने पर सालभर काम मिलता है लेकिन असल में ऐसा है नहीं। कोरोना काल में जब बड़ी संख्या में लोग अपने घर-गावों को लौटे थे तो सरकारों ने काम करने के इच्छुक लोगों को मनरेगा जॉब कार्ड बनवाने को कहा। पंजीकरण शुरू हुए, रोजगार की आस में लाखों लोगों ने पंजीकरण करा लिया।

इस योजना के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्त वर्ष में कम से कम सौ दिनों का काम प्रदान किया जाता है। लेकिन, उत्तराखंड में जैसा कागजों में बताया गया है वैसा धरातल में नहीं है।

खुद इसकी तस्दीक ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़े कर रहे हैं। जिसके अनुसार राज्य में पिछले 5 सालों में कभी भी प्रति परिवार औसत रोजगार के दिनों की संख्या 50 तक भी नहीं पहुंच सकी। लाखों की संख्या में से केवल कुछ हजार लोग ही 100 दिन की मजदूरी पूरी कर रहे हैं।

आंकड़ों पर गौर करें तो कोरोनाकाल से पहले यानी 2017-18 में उत्तराखंड में 6.62 लाख, 2018-19 में 6.39 और 2019-20 में 6.61 लाख लोगों ने मनरेगा के तहत काम किया था। जबकि 2020-21 में मनरेगा मजदूरों की संख्या में बड़ा इजाफा हुआ। कोरोना काल में मनरेगा मजदूरों की संख्या करीब ढ़ाई लाख तक बढ़ गई। यही सिलसिला 2021-22 में भी जारी रहा।