जस्टिस अरुण मिश्रा व जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने बोला कि जातीय भेदभाव समाप्त होना चाहिए। अच्छा हो अगर ऊंची जाति वाले लोग निचली जातियों में शादियां करें। ये समाज में बेहतरी लाएगा। बेंच ने यहां तक बोला कि कि न्यायालय ने लिव इन रिलेशन को भी मान्यता दी है। न्यायालय सिर्फ लोगों के हितों की रक्षा करना चाहती है।
न्यायालय के ये विचार स्वागतयोग्य हैं, लेकिन इस विचार को समाज के वर्तमान परिस्थिति से मिलान करके देखना होगा। ये पता लगाना होगा कि हिंदुस्तान में अंतरजातीय व अंतरधार्मिक शादियों की क्या स्थिति है? क्या बदलते वक्त के साथ हमारे समाज का दिल इतना बड़ा हुआ है कि वो अंतरजातीय या अंतरधार्मिक शादियों को मान्यता दे दे? या इस मुद्दे में शादियों के आंकड़े क्या कहते हैं?
भारत में जाति देखकर होती हैं 95 प्रतिशत शादियां
2005-06 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े के मुताबिक हिंदुस्तान में होने वाली कुल शादियों में सिर्फ 10 प्रतिशत शादियां ही इंटरकास्ट या अंतरजातीय होती हैं। वहीं इंटर रिलीजन यानी अंतरधार्मिक शादी सिर्फ 2.1 प्रतिशत होते हैं।
हिंदुस्तान में 95 प्रतिशत शादियां जाति देखकर होती हैं
वहीं 2016 के नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के सर्वे के मुताबिक हिंदुस्तान में होने वाली कुल शादियों में सिर्फ 5 प्रतिशत शादियां ही अंतरजातीय होती हैं। प्रगतिशील समाज के मानकों पर ये आंकड़ा कहीं से भी खरा नहीं उतरता है। ये आंकड़े ये बताने के लिए बहुत ज्यादा है कि इतना वक्त बीत जाने के बाद भी हमारा समाज अंतरजातीय व अंतरधार्मिक शादियों को लेकर कितनी संकीर्ण सोच रखता है।
अंतरजातीय शादी में नॉर्थ ईस्ट के प्रदेश ज्यादा आगे हैं। मसलन मिजोरम में सबसे ज्यादा इंटरकास्ट मैरिज होती हैं। मिजोरम की 87 प्रतिशत आबादी क्रिश्चन है। मिजोरम के बाद अंतरजातीय शादी करने वाले राज्यों में मेघालय व सिक्किम का नाम आता है। मेघालय में 46 परसेंट शादियां इंटरकास्ट होती हैं जबकि सिक्किम में 38 फीसदी।
अंतरजातीय शादियों में बिहार का रिकॉर्ड कहीं बेहतर
हिंदुस्तान में 95 प्रतिशत शादियां जाति देखकर की जाती है। जाति देखकर विवाह करने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश व छत्तीसगढ़ का नाम सबसे ऊपर आता है। मध्य प्रदेश की 99 प्रतिशत शादियां जाति देखकर की जाती हैं। वहीं हिमाचल व छत्तीसगढ़ में 98 प्रतिशत शादियां सेम कास्ट में होती हैं।
2004-05 के एक आंकड़े के मुताबिक अंतरजातीय शादी के मुद्दे में बिहार व गुजरात का रिकॉर्ड कहीं बेहतर है। बिहार व गुजरात में 11 प्रतिशत शादियां इंटरकास्ट होती हैं।
अंतरजातीय शादियों में बिहार का रिकॉर्ड कहीं बेहतर है
अंतरधार्मिक शादी के मामलों में हिंदुस्तान की स्थिति व भी बेकार है। खासकर हिंदू-मुस्लिम के बीच शादी में अब व ज्यादा अड़चनें आने लगी हैं। हिंदू-मुस्लिम के बीच शादी को लेकर लव जिहाद एक नया बवाल बनकर खड़ा हुआ है। इन दोनों धर्मों के बीच के नफरत ने प्यार के अंकुर फूटने में हर वक्त बाधा डाली है।
अंतरजातीय व अंतरधार्मिक शादियों में आड़े आती है समाज की संकीर्ण सोच
2018 के फरवरी महीने में दिल्ली के एक फोटोग्राफर की इसलिए बेहरमी से मर्डर कर दी गई क्योंकि वो एक मुस्लिम लड़की से प्यार करता था। अंकित सक्सेना हत्या केस की कहानी आपने सुन रखी होगी। 2018 की फरवरी में कर्नाटक में एक 20 वर्ष की लड़की को इसलिए प्रताड़ित किया गया क्योंकि उसकी एक मुस्लिम लड़के से दोस्ती थी। जून 2018 में लखनऊ के तन्वी सेठ के पासपोर्ट का मुद्दा सुर्खियों में रहा था। तन्वी सेठ ने आरोप लगाया था कि उसके पति के मुस्लिम धर्म के होने की वजह से पासपोर्ट ऑफिसर ने उसका पासपोर्ट बनाने से मना किया था।
समझा जा सकता है कि हिंदुस्तान में अंतरधार्मिक खासतौर पर हिंदू व मुस्लिम के बीच शादी कितना कठिन है। अल जजीरा ने कुछ ऐसे हिंदू मुस्लिम जोड़े से बात की, जिन्होंने विपरित परिस्थितियों के बावजूद शादियां की थीं। वार्ता में दिलचस्प जानकारी सामने आई।
अंतरजातीय व अंतरधार्मिक शादियों में हम इतने पिछड़े क्यों हैं?
एक कहानी 37 वर्ष के मुस्लिम साइंटिस्ट वसीम व 33 वर्ष की हिंदू महिला देवत्तिमा दत्ता की है। इनकी मुलाकात 16 वर्ष पहले हुई थी। दोनों को विवाह किए 13 वर्ष हो चुके हैं। हालांकि विवाह से लेकर अब तक के सफर में कई ऐसी यादें हैं, जो वो जिंदगीभर नहीं भूल पाएंगे।
वसीम ने बताया कि उनके घरवाले इस विवाह के लिए राजी थे। कठिन संबंधियों व आसपड़ोस वालों ने प्रारम्भ की। वसीम की बिरादरी के लोगों का बोलना था कि देवत्तिमा दत्ता अपना धर्म बदलाव कर ले। वे लोग हिंदू धर्म की लड़की से विवाह के विरूद्ध थे। देवत्तिमा दत्ता की फैमिली की तरफ से भी दवाब था। आखिर में दोनों ने घर छोड़ दिया।
हमारा समाज हिंदू-मुस्लिम के बीच शादियों को प्रोत्साहित नहीं करता
वसीम व देवत्तिमा ने स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत विवाह की। ये एक्ट दो बालिगों को धर्म की परवाह किए बिना विवाह करने का अधिकार देता है। विवाह के कुछ सालों बाद दोनों की फैमिली ने भी अपना लिया। लेकिन इसके बाद भी दशा सामान्य नहीं रहे।
वसीम व देवत्तिमा के दो बच्चे हैं। 9 वर्ष का बेटा अंतोरिक रहमान व 7 वर्ष की बेटी इप्शिता दत्ता। बेटी के एडमिशन के वक्त दोनों का धर्म फिर आड़े आया। दरअसल वसीम व देवत्तिमा का बेटा पहले से ही उस स्कूल में पढ़ रहा था। स्कूल का प्रधानाचार्य इस बात पर दंग था कि रहमान की सगी बहन इप्शिता दत्ता कैसे हो सकती है। वसीम को अपना मैरिज सर्टिफिकेट स्कूल में जमा करवाना पड़ा, तब जाकर उनकी बेटी का एडमिशन हो पाया।
धर्म व जाति देखकर नहीं सम्मान व सरेंडर से निभाया जाता है रिश्ता
भारतीय समाज में जिस तरह की परंपरा रही है वो अंतरजातीय या अंतरधार्मिक शादी को कभी प्रोत्साहित नहीं करती। इतना जरूर है कि प्यार व सरेंडर से ऐसे संबंध निभाना ज्यादा कठिन भी नहीं है। ऐसी कई सफल शादियों के उदाहरण हैं। कोरा पर जूही खान ने अपनी कहानी ईद व दीवाली की तस्वीरों के साथ शेयर की है।
अपने पति के साथ जूही खान
जूही मुस्लिम हैं व उन्होंने हिंदू राजपूत लड़के से विवाह की है। वो कहती हैं कि सफल विवाह के लिए धर्म व जाति से ज्यादा प्यार व सम्मान जरूरी है। जूही कहती हैं कि उनकी विवाह हुए 9 वर्ष बीत गए हैं। इन सालों में हमने एकदूसरे को सम्मान व प्यार दिया। मैं अपने पति के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हूं व मेरे पति ईद के दिनों में रोजा रखते हैं। हम ईद व दीवाली दोनों सेलिब्रेट करते हैं। इस तरह हम एकदूसरे का सम्मान करते हैं।
जूही बताती हैं कि उनके पति हर प्रातः काल पूजा करते हैं व हर शाम को वो नमाज पढ़ती हैं। वे कुरान शरीफ व हिंदू देवी देवताओं को एकसाथ रखती हैं। ये ऐसे मामलों के आदर्श उदाहरण हैं। हालांकि ये उतने ज्यादा दिखते नहीं। ऐसे ही उदाहरणों को देखकर न्यायालय ने भी बोला है कि अंतरजातीय व अंतरधार्मिक शादी जितने ज्यादा होंगे उतना ही अच्छा होगा।