60 वर्षों से न्यायालय में लंबित हैं इतने मामले

बक्सर के रहने वाले राहुल पाठक ने 5 मई, 1951 को अंतिम निर्णय के लिए एक मामला दर्ज किया था. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के रिकॉर्ड के अनुसार यह मामला अभी भी जिरह के स्तर पर है  इसकी आखिरी सुनवाई 18 नवंबर, 2018 को हुई थी. न्यायालय ने अभी तक सुनवाई की अगली तारीख अपडेट नहीं की है.

यह कहानी थोड़ी असमान्य जरूर है लेकिन अकेली नहीं है. इस तरह के हजारों ऐसे मामले हैं जो पिछले 50-60 वर्षों से अदालतों में लंबित पड़े हुए हैं. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 1951 से निचली अदालतों में 60 वर्ष से ज्यादा पुराने मामले लंबित हैं. 28 दिसबंर, 2018 तक निचली  अधीनस्थ अदालतों में 30 वर्ष पुराने लंबित मामलों की संख्या 66,000 हजार है. वहीं पांच साले पुराने मामलों की संख्या 60 लाख है.

गवर्नमेंट द्वारा हाल में किए गए मूल्यांकन से पता चला है कि यदि वर्तमान में मामलों को निपटाया जाए तो अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों को निपटाने में 324 वर्ष लग जाएंगे. रिकॉर्ड्स के अनुसार लंबित मामलें बढ़कर 2.9 करोड़ हो गए हैं. 71 फीसदी मामलें आपराधिक हैं जिसमें आरोपी अरैस्ट हो चुका है  अंडरट्रायल के तौर पर कारागार में बंद है.

पिछले महीने अधीनस्थ न्यायालय ने 8 लाख मामलों का निपटान किया था जबकि वहां दर्ज हुए नए मामलों की संख्या 10.2 लाख है. इससे औसतन हर महीने 2.2 लाख मामले बैकलॉग होते जा रहे हैं. 1951 से पिछले 48-58 वर्ष के दौरान 1,800 मामले अभी भी सुनवाई  बहस स्तर पर ही हैं. वहीं 13,000 मामले पिछले 40 वर्षों से लंबित हैं  37 वर्षों से 51,000 मामले लंबित पड़े हुए हैं.

सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य यूपी में सबसे ज्यादा 30 वर्षों से 26,000 मामले लंबित हैं. इसके बाद महाराष्ट्र का नंबर आता है जहां 13,000 मामले लंबित हैं. 96 फीसदी लंबित मामले यूपी, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात  उड़ीसा से हैं. इन राज्यों के लंबित मामलों की कुल संख्या 1.8 करोड़ है. वहीं 2.93 करोड़ के 61 फीसदी मामले निचली अदालतों में लंबित हैं.