सोमवार को बनवरी एक-एक डेड बॉडी को अपने हाथों से उतरवाकर नाम-पते के टैग के साथ रखवा रहे थे। पोस्टमार्टम के दौरान डॉक्टरों की मदद भी कर रहे थे। लेकिन सोमवार प्रातः काल से मंगलवार की प्रातः काल तक कराने वाले बनवारी अब टूट चुके हैं। न्यूज18 हिन्दी से उन्होंने अपना दर्द साझा किया।
बनवारी का बोलना है, “इस बस हादसे में 30 लाशें पोस्टमार्टम के लिए आईं थी। इससे पहले 2018 में शहर में बहुत तेज आंधी आई थी। उस दौरान शहर व गांव में मिलाकर करीब 40 से अधिक मौतें हुईं थी। वहीं 2002 में एक जूता फैक्ट्री में आग लग गई थी। उस हादसे में 44 लोगों की मृत्यु हुई थी। तब भी मैंने ही सभी लाशों का पोस्टमार्टम कराया था। एक साथ दो व चार लाशों का पोस्टमार्टम कराने का तो कोई हिसाब ही नहीं है।
हकीकत पूछो तो अब इतनी लाशें एक साथ नहीं देखी जाती हैं। अब ज़रा भी मन नहीं करता कि पोस्टमार्टम हाउस की जॉब करूं। लाशों की भीड़ में बच्चों को देखकर कलेजा मुंह को आने लगता है। सोचता हूं कि अभी तो इसने संसार देखी भी नहीं थी व इस आयु में चला गया। अब तो ऊपर वाले से बस एक ही दुआ है कि ऐसा मंजर चौथी बार देखने को न मिले। ”