
गौरतलब है कि 6 जून दिन वीरवार से बोरवेल में गिरे फतेहवीर सिंह को 109 घंटे बाद उसे उसी बोरवेल से निकाला गया, जिसमें वह गिरा था. लेकिन फतेहवीर जिंदगी की जंग पराजयगया. गांव के ही एक युवक ने उसे बाहर निकाला. ऐसे में न एनडीआरएफ की कारगुजारी कार्य आई व न ही कोई तकनीक, मशीन. बताया जा रहा है कि जिस बोर में फतेह फंसा था, उससे दुर्गंध आ रही थी. लोगों को व मीडिया को बोरवेल तक जाने नहीं दिया जा रहा है.
जैसे ही फतेहवीर को निकाला गया, तुरंत नजदीकी अस्पताल ले जाया गया. फतेहवीर के मां-बाप को भी पहले ही अस्पताल भेज दिया गया था. वहां बच्चे को प्राथमिक इलाज दिया गया, फिर पीजीआई चंडीगढ़ ले जाया गया. ढाई घंटे के सफर के बाद बच्चा पीजीआई पहुंचा, जहां उसकी मृत्यु हो गई. लोग फतेह को निकालने में हुई देरी, एनडीआरएफ की कार्यप्रणाली व प्रशासन की कारगुजारी पर लोग सवाल उठा रहे हैं.
फतेहवीर को निकालने के लिए पांच दिन चले ऑपरेशन को देखकर लोग भड़क गए व उन्होंने हाईवे जाम कर दिया है. लोगों का बोलना है कि बच्चे को बचाने के लिए बोरवेल के समांतर एक दूसरा बोरवेल खोदा गया था व उसमें कंक्रीट के बने 36 इंच व्यास के पाइप डाले गए थे. रविवार आधी रात तक सौ फुट गहरी सुरंग खोद दी गई थी, लेकिन इसे जब बोरवेल से मिलाया गया तो इसकी दिशा गलत हो गई.
सोमवार प्रातः काल इसे बोर से मिलाने का कार्य प्रारम्भ किया गया, लेकिन इसका मिलान जमीन के अंदर बने एक दूसरे बोरवेल से हो गया. यह देखकर लोग भड़क गए व उन्होंने एनडीआरएफ की टीम पर सवाल उठाने प्रारम्भ कर दिए. इसके बार नए सिर से कार्य प्रारम्भ हुआ, लेकिन नयी सुरंग की गहराई पुराने बोर से ज्यादा हो गई. सोमवार शाम पांच बजे पुराने बोर का निचला भाग मिलने का दावा किया गया, लेकिन फतेह को निकालने की जद्दोजहद रात तक जारी रही.