अब इसी फ़ॉर्मूले पर कार्य करते हुए अखिलेश उपचुनाव में उतरेंगे। वे संपर्क, संवाद व प्रयत्न के रास्ते पर चलेंगे। इसके लिए अखिलेश लोकसभा सत्र समाप्त होने के बाद जुलाई से उत्तर प्रदेश के सभी जिलों का दौरा करेंगे। इस दौरान वे लोगों से सम्पर्क व संवाद करेंगे। जनता को पार्टी की नीतियों से अवगत कराएंगे व उनकी समस्याओं को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं संग प्रयत्न करते नजर आएंगे। इसके लिए पार्टी के नेता, पदाधिकारी, जिला, बूथ व गांव स्तर के कार्यकर्ताओं को आदेश दिया गया है कि वे जनता के बीच जाएं।
मुलायम-शिवपाल ने संगठन को किया था मजबूत
मुलायम सिंह यादव को एक मझा हुआ राजनेता माना जाता है। उनकी पॉलिटिक्स जमीन से जुड़ी हुई रही है। लोगों से मिलना, उनसे बात करना व उनकी समस्याओं को लेकर किए गए प्रयत्न की वजह से ही समर्थक उन्हें ‘धरतीपुत्र’ बुलाते हैं। मुस्लिम व पिछड़ों के साथ मुलायम सवर्णों को भी अपने साथ जोड़ने में माहिर रहे।
गठबंधन की रणनीति हुई फेल
2017 में अखिलेश ने पार्टी व परिवार में कलह के बाद जब पार्टी पर एकाधिकार जमाया तो उसके बाद से उनकी प्रतिनिधित्व में पार्टी दो बड़े चुनाव पराजय चुकी है। दरअसल वे गठबंधन की रणनीति पर आगे बढ़े। 2017 का विधानसभा चुनाव उन्होंने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन कर लड़ा।
उत्तर प्रदेश की पॉलिटिक्स को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल कहते हैं कि चुनाव हारने के बाद सभी पार्टियां समीक्षा करती हैं। उसके बाद वे जनता के बीच जाने की बात भी करती हैं। ऐसा ही कुछ अब कांग्रेस, बीएसपी व सपा भी कर रही है। प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश दौरा बढ़ाने जा रही हैं, मायावती भाईचारा कमेटी की मीटिंग करेंगी व अब अखिलेश भी जिले का दौरा।
2012 के बाद से नहीं किया जिलों का दौरा
अखिलेश यादव ने आखिरी बार 2012 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के सभी जिलों का दौरा किया था। लेकिन सीएम बनने के बाद ये सिलसिला समाप्त हो गया। 2017 में सत्ता गंवाने के बाद एक बार लगा था कि वे जिले में निकलेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे लखनऊ से बैठकर ही संगठन की समीक्षा करते रहे। लोकसभा चुनाव से पहले भी उनके भ्रमणगिने चुने ही रहे। चुनाव प्रचार के दौरान भी वे सभी जिले में नहीं पहुंचे। यही वजह थी कि सपा के दूसरे पंक्ति के नेता भी जनता से कटे रहे।
सीएम योगी ने मथा पूरा यूपी
उधर भाजपा की बात करें तो 2017 में सीएम बनने के बाद से ही योगी आदित्यनाथ सूबे के 75 जिलों में एक से ज्यादा बार जाने का रिकॉर्ड बनाया। साथ ही उनके मंत्री, विधायक वसंगठन के पदाधिकारी भी कई कार्यकर्मों के माध्यम से गांव-गांव घुमे। जिसका प्रभाव यह हुआ कि सपा-बसपा के बीच जातिगत समीकरण पर आधारित गठबंधन होने के बावजूद भाजपा 62 सीटें जीतने में सफल रही। जबकि सपा को पांच व बीएसपी के खाते में 10 सीटें गईं।