नए वर्ष में आने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा अपने गठबंधन वाले दलों के साथ और कांग्रेस जगह-जगह बने अलग-अलग गठबंधनों को लेकर रणनीतियों की दांव चलने में लगे हैं | ऐसे में यह समझा जा रहा है कि सभी दल अथवा गठबन्धनों का फोकस किसानों व युवाओं को लुभाने पर रहेगा | बड़ी और निर्णायक आबादी किसानों की है और इस ओर दलों की पैनी नजर है |
लेकिन कई बार ये सबकुछ किनारे करके कृषि के मुद्दे पर एकजुट हो जाते हैं। यही वजह है कि इन दिनों किसानों को खुश करने के लिए केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा से लगायत विपक्षी दल कांग्रेस , तेदेपा, टीआरएस आदि भी किसानों की फसलों, उत्पादों के अधिक दाम देने, उनके लिए सस्ते दर पर सहजता से कृषि ऋण मुहैया कराने, उनके ऋण माफ करने की बढ़-चढ़कर बात करने लगे हैं। इसको देखते हुए किसानों के संगठन भी प्रति किसान 18 हजार रुपये मासिक देने की भी मांग करने लगे हैं। मंहगाई आदि के बढ़ने के कारण सरकारी कर्मचारियों के वेतन बढ़ा दिये जा रहे हैं । सातवां वेतन आयोग लागू होने के बाद उनके वेतन आसमान छूने लगेंगे ।
जबकि किसानों को उनकी फसलों के मूल्य लागत काटकर लगभग वही मिल रहे हैं जो 40 वर्ष पहले मिल रहे थे। लागत में किसान की मजदूरी, उसके घर वालों की मजदूरी आदि नहीं जोड़ी जा रही है। उसकी छुट्टी, बीमारी को भी नहीं जोड़ा जा रहा है। इसलिए मांग होने लगी है कि किसानों को भी कुछ हद तक कर्मचारियों वाली सुविधाएं व लाभ दिया जाये , जैसे अमेरिका व यूरोपीय देशों में हो रहा है।
इस बारे में भाजपा सांसद व भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह का कहना है कि देर से ही सही किसान व उसकी समस्यायें अब राजनीति के केन्द्र में आ गयी हैं । अब तक सबसे उपेक्षित किसान ही रहा करते थे, मगर अब तरजीह देने की बात सत्ता को समझ में आने लगी है |