मृत्यु की घड़ी नजदीक आते ही सिरहाने खड़े रहते हैं ये दो लोग

धरती पर जन्म लेने वाले हर जीव की मृत्यु निश्चित है। आत्मा भले ही अमर है, लेकिन शरीर का त्याग एक निश्चित समय के बाद हर किसी को करना पड़ता है। इस पर किसी भी ताकत का कोई वश नहीं है।

चाहकर भी मौत को जीतना संभव नहीं।

हालांकि जिंदगीभर इंसान इस सच्चाई से मुंह को मोड़कर मन में जो आये वह करता रहता है।

कुछ समय की खुशी के लिए इंसान दूसरों को धोखा देने, कष्ट पहुंचाने, रुलाने, दिल दुखाने से पीछे नहीं हटता है क्योंकि उसके लिए वर्तमान महत्व रखता है,भविष्य के बारे में सोचने की उसे फुर्सत ही नहीं रहती है।

जब वक्त हाथ से निकल जाता है, जब वाकई में कुछ और करने को नहीं रहता है तब जिंदगीभर उसे अपने द्वारा किए गए कुकर्मों का ख्याल आता है।

जी हां, जब किसी व्यक्ति की मौत का समय नजदीक आता है तो एकबार के लिए भले ही वह अपने परिजनों को पहचानने में असफल रहता है, लेकिन अपनी बीती बातें उसे रह-रहकर याद आती रहती है।

जब उसे शारीरिक पीड़ा होती है, कष्ट का अनुभव होता है तब उसे अपने द्वारा किए गए बुरे कर्मों का पछतावा होता है। उसकी आंखों से आंसू निकल रहे होते हैं, लेकिन तब करने को कुछ भी नहीं रहता है।

जीवन में किए गए सारे अच्छे-बुरे कर्मों का घटनाक्रम एक-एक करके उसकी आंखों के सामने बारी-बारी से घूमने लगता है।

गरुड़ पुराण में ऐसा बताया गया है कि जब मृत्यु की घड़ी नजदीक आती है तो उस व्यक्ति को ऐसा आभास हो जाता है कि दो लोग उसके सिरहाने खड़े हैं।

वह उन्हें देख सकता है, महसूस कर सकता है। ये दो असल में यमदूत होते हैं जो उसे यमलोक में ले जाने के लिए खड़े रहते हैं।