भीमा कोरेगांव हिंसा के सूत्रधार को दलित एकेडमिक के रूप में प्रचारित करने को लेकर उठाया सवाल

शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए भीमा कोरेगांव हिंसा के सूत्रधार को दलित एकेडमिक के रूप में प्रचारित करने को लेकर सवाल उठाया है पार्टी ने लिखा है कि भीमा-कोरेगांव दंगे के सूत्रधार के रूप में पुलिस ने आनंद तेलतुंबडे को पकड़ा है लेकिन तेलतुंबडे को अरैस्ट करने पर पुणे जिला कोर्ट ने पुलिस को ही क्रिमिनल ठहराया है किस आधार पर तेलतुंबडे को अरैस्ट किया गया? सबूत क्या है? ऐसा सवाल पूछते हुए न्यायालय ने तेलतुंबडे को छोड़ दिया तेलतुंबडे ने गिरफ्तारी से बचने के लिए मुंबई न्यायालय में याचिका दाखिल की है उस पर अब कोर्ट ने उन्हें 12 फरवरी तक अरैस्ट नहीं करने का आदेश दिया है मतलब तेलतुंबडे को  6 -7 दिनों की ‘राहत’ मिल गई है

शिवसेना ने आगे लिखा है कि तेलतुंबडे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विचारक हैं, ऐसा ढोल अब पीटा जा रहा है अंग्रेजी अखबारों ने उनका उल्लेख ‘दलित एकेडमिक’ के रूप में किया हैहकीकत तो यह है कि विचारकों को  बुद्धिमानों को जाति-धर्म  पंथ की उपाधि न लगाई जाए पेट तथा होशियारी जाति चिपकाने से दिमाग नामक अवयव का अपमान होता है पुणे के यलगार परिषद के बाद महाराष्ट्र में जातीयता का जहर बोया गया उसके बाद भीमा-कोरेगांव का दंगा हुआ महाराष्ट्र में इस तरह जहरीला जाति उद्रेक कभी नहीं हुआ था इसमें आम आदमी झुलस गया डॉ आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर इस आग में ऑयल डालकर मामले को क्यों भड़का रहे थे  उन्हें निश्चित तौर पर क्या करना था? वो अनाकलनीय था फिर भी महाराष्ट्र को जलाने की साजिश नक्सलवादी एकता में पकी  उसके पीछे खुद कवि, लेखक, बुद्धिमान कहलाने वाले लोगों का वैचारिक दिमाग था यलगार परिषद के पर्दे के पीछे सूत्र हिलाने के आरोप तले तेलतुंबडे सहित तेलुगू लेखक वरवरा राव, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण परेरा, वर्नोन गोंसाल्विस  सुधा भारद्वाज को जनवरी माह में नजरबंद रखा गया था

इस कार्रवाई के बाद भी राष्ट्र के दिखावटी बुद्धिमानों ने इस तरह कोहराम मचाया जैसे आसमान गिर पड़ा हो  राष्ट्र डूब जाएगा, ऐसा माहौल बनाया गया न्यायालय ने इन सभी लोगों को गिरफ्तारी से अस्थायी रूप से सुरक्षा दी है अब तेलतुंबडे के बारे में भी यही हुआ है तो क्या पुलिस कुछ न करते हुए, ‘हाथ बांधकर मुंह पर उंगली रखकर’ चुपचाप बैठी रहे? इन बुद्धिमानों द्वारा किया गया जहरीला प्रचार  उनके सम्बोधन को पुलिस ने सबूत के रूप में प्रस्तुत किया है ये सारे लोग राष्ट्र अस्थिर करने के पीछे के सूत्रधार थे ऊपर से पढ़े-लिखे होने से  बड़े लोगों में उठने-बैठने के कारण उनके इर्द-गिर्द प्रतिष्ठा का एक वलय बन गया था प्रशासन, न्याय व्यवस्था, शैक्षणिक एरिया में अपने संबंध बनाकर खुद के इर्द-गिर्द कवच कुंडल का निर्माण किया था  उसी का लाभ उठाकर ये लोग राष्ट्र में नक्सलवाद  माओवाद का विनाशकारी विचार बो रहे थे

इन अर्थों में इन लोगों को आतंकवाद का प्रायोजक या प्रचारक बोला जाना चाहिए  आनंद तेलतुंबडे पर यही आरोप है दूसरे कुछ तथाकथित विचारकों के विरूद्ध भी यही आरोप हैविचारक होने के बावजूद आपको भी कानून का सामना करना पड़ेगा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मतलब आतंकवादी, ऐसा प्रकाश आंबेडकर तथा उनके साथी कहते हैं उनका साथी मतलब हैदराबाद का ओवैसी है  यही लोग कन्हैया कुमार, तेलतुंबडे, जिग्नेश मेवानी का समर्थन करते हैं संघ प्रखर रूप से राष्ट्रवादी है उसने चीन, रशिया, पाक में समझदारी गिरवी नहीं रखी है  अंतरराष्ट्रीय ‘स्कॉलर्स’ का लेबल लगाकर वे फालतू यलगार नहीं करते इस अंतर को समझना होगा हिंदुत्व का द्वेष ही इन लोगों का विचार है  यही विचारक अंतरराष्ट्रीय मंच पर जाकर राष्ट्र की बदनामी कर रहे हैं प्रोफेसर तेलतुंबडे ‘स्कॉलर’ हैं बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर भी स्कॉलर थे  उन्होंने ब्रिटिश गवर्नमेंट को पलटने की साजिश रची इसी के लिए वीर सावरकर को आज भी आतंकी आदि ठहराकर अपमानित किया जाता है

सावरकर जैसों ने विदेशी सत्ता को पलटने की साजिश रची थी लेकिन ‘यलगार’वालों को स्वतंत्र हिंदुस्थान में उत्पात मचाना था, इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए प्रकाश आंबेडकर एक तरफ शारदा चिट फंड मामले में कार्रवाई करनेवाले CBI ऑफिसर को अरैस्ट किए जाने पर पश्चिम बंगाल पुलिस की कार्रवाई का समर्थन करते हैं  इधर महाराष्ट्र पुलिस द्वारा भीमा-कोरेगांव मामले में की गई कार्रवाई के प्रति अलग नीति अपनाते हैं महाराष्ट्र में भीमा-कोरेगांव के जरिए जो उत्पात मचाया गया उसके कारण समाज विभाजित हुआ है  इस तरह की विषमता के बीज बोनेवाली कविता  साहित्य का निर्माण करना तथा प्रसारित करना इस तरह के उत्पात के लिए निधि जमा करना इन माओवादी विचारकों का काम बन गया है

अलकायदा तथा ‘यलगार’ छाप विचारकों की कार्यशैली एक ही है पुलिस प्रशासन  कानून पर निरंतर हमला करना, गवर्नमेंट पर प्रश्नचिह्न लगाना, व्यवस्था के मनोधैर्य को तोड़कर उसे लंगड़ा बनाने की अलकायदा की रणनीति है यलगारवालों की भी यही नीति है सामूहिक हत्याकांड, भ्रष्टाचार, मर्डर जैसे आरोपों से क्रिमिनल छूट जाते हैं इसलिए वे बेगुनाह ही होते हैं, ऐसा नहीं है प्रोफेसर तेलतुंबडे के लिए छाती पीटनेवालों को यह बात समझनी होगी कुछ तो भयंकर राष्ट्र विरोधी पक रहा है पुलिस को ही आरोपी बनाना उस साजिश की आरंभ है पुलिस के समर्थन में मजबूती से खड़े रहने का यही समय है