भारत में किस तरह फैलती है फ़ेक न्यूज़

बीबीसी की नए रिसर्च में सामने आया है कि लोग कथित राष्ट्र निर्माण के उद्देश्यों के साथ राष्ट्रवादी संदेशों वाली फ़ेक न्यूज़ को साझा कर रहे हैं और राष्ट्रीय पहचान का प्रभाव ख़बरों से जुड़े तथ्यों की जांच की ज़रूरत पर भारी पड़ रहा है.

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ये जानकारी आम लोगों के नज़रिये से फ़ेक न्यूज़ के प्रसार का विश्लेषण करते हुए प्रकाशित हुए पहले अध्ययन में सामने आई है.

ये रिपोर्ट ट्विटर के नेटवर्कों की जांच करते हुए इस बात का विश्लेषण भी करती है कि लोग इनक्रिप्टड मैसेज़िंग ऐप्स में किस तरह संदेशों का आदान-प्रदान कर रहे हैं.

बीबीसी के लिये ये विश्लेषण करना तब संभव हुआ जब मोबाइल फ़ोन यूजर्स ने बीबीसी को उनके फ़ोन की जांच करने का अधिकार दिया.

ये रिसर्च ग़लत सूचनाओं के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय पहल, #BeyondFakeNews के रूप में सामने आ रहा है.

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रिपोर्ट में सामने आई मुख्य बातें

  • बीबीसी की नई रिसर्च दिखाती है कि राष्ट्रवाद फ़ेक न्यूज़ के प्रसार में योगदान दे रहा है
  • बीबीसी ने भारत, कीनिया और नाइजीरिया में गहन शोध किया है
  • ये रिपोर्ट गहराई से समझाती है कि इनक्रिप्टड चैट ऐप्स में फ़ेक न्यूज़ किस तरह फैलती है
  • ख़बरों को साझा करने में भावनात्मक पहलुओं का भारी योगदान है.
  • बियोंड फ़ेक न्यूज़ ग़लत सूचनाओं के फैलाव के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय पहल है.

भारत में लोग उस तरह के संदेशों को आगे बढ़ाने में एक तरह की झिझक महसूस करते हैं जो उनके मुताबिक़ हिंसा पैदा कर सकते हैं, लेकिन यही लोग राष्ट्रवादी संदेशों को आगे बढ़ाने को अपना कर्तव्य समझते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत की प्रगति, हिंदू शक्ति और हिंदू गौरव के पुनरुद्धार से जुड़े संदेश तथ्यों की जांच किए बिना भारी मात्रा में साझा किए जा रहे हैं.

इस तरह के संदेशों को भेजते हुए लोगों को महसूस होता है कि वे राष्ट्र निर्माण का काम कर रहे हैं.

कीनिया और नाइजीरिया में फ़ेक न्यूज़ के प्रसार के पीछे भी एक तरह की कर्तव्य की भावना है.

लेकिन इन दोनों देशों में ये संभावना ज़्यादा है कि लोग राष्ट्र निर्माण के कर्तव्य से प्रेरित होने की जगह ब्रेकिंग न्यूज़ को साझा करने के प्रति ज़्यादा प्रेरित होते हैं ताकि कहीं अगर वो ख़बर सच हुई तो वह उनसे जुड़े लोगों को प्रभावित कर सकती है.

सूचना के लोकतांत्रिकरण के प्रति समर्पण की भावना यहां दिखाई पड़ती है.

ये रिपोर्ट सुझाती है कि भारत में फ़ेक न्यूज़ और मोदी के समर्थन में राजनीतिक सक्रियता भारी मात्रा में है.

फ़ेक न्यूज़ का मोदी कनेक्शन

बिग डेटा एनालिसिस के प्रयोग से ट्विटर के नेटवर्कों के विश्लेषण में बीबीसी ने पाया है कि भारत में वामपंथ की ओर झुकाव वाले फ़ेक न्यूज़ के स्रोतों में आपसी संबंध काफ़ी कम है.

जबकि दक्षिणपंथ की ओर झुकाव वाले फ़ेक न्यूज़ के स्रोतों के बीत गहरा संबंध है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

इस वजह से वामपंथ की ओर झुकाव वाली फ़ेक न्यूज़ की अपेक्षा दक्षिणपंथ की ओर झुकाव वाली फ़ेक न्यूज ज़्यादा प्रभावशाली ढंग से फैलती है.

भारत, कीनिया और नाइजीरिया में आम लोग अनजाने में ये उम्मीद करते हुए संदेशों को आगे बढ़ाते हैं कि उन ख़बरों की सत्यता की जांच कोई और कर लेगा.

जहां एक ओर भारत में फ़ेक न्यूज़ के प्रसार में राष्ट्रवाद अहम है तो वहीं कीनिया और नाइजीरिया में ये रिसर्च कुछ और ही तस्वीर पेश करती है.

कीनिया और नाइजीरिया का मामला अलग

कीनिया और नाइजीरिया में जो फ़ेक न्यूज़ प्रसारित की जाती हैं उनमें राष्ट्रीय चिंताएं और आकांक्षाएं अहम हैं.

कीनिया में व्हाट्सऐप बातचीत में साझा की जाने वाली फ़ेक न्यूज़ में आर्थिक घोटालों और तकनीकी योगदान से जुड़ी झूठी ख़बरें एक तिहाई होती हैं.

वहीं, नाइजीरिया में आतंकवाद और सेना से जुड़ी ख़बरें बहुतायत से साझा की जा रही हैं.

कीनिया और नाइजीरिया में लोग मुख्य धारा के मीडिया स्रोतों और फ़ेक न्यूज़ के नामी स्रोतों का बराबर मात्रा में इस्तेमाल करते हैं.

हालांकि, लोगों में असली ख़बर को जानने की इच्छा भारत की अपेक्षा कहीं ज़्यादा है.

नाइजीरिया में फ़ेक न्यूज़

अफ़्रीकी बाज़ारों में लोग ये नहीं चाहते कि कोई ख़बर उनसे छूट जाए. वहां के सामाजिक ताने-बाने में एक जानकार व्यक्ति की छवि सामाजिक साख का विषय है.

ये कारक निजी नेटवर्कों में फ़ेक न्यूज़ के प्रसार की संभावना को जन्म देते हैं चाहे लोग सत्यता की पुष्टि करने के लिए गंभीर इरादा रखते हों.

प्रतीकात्मक तस्वीर

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में ऑडियंस रिसर्च विभाग के प्रमुख डॉक्टर शांतनु चक्रवर्ती कहते हैं, “इस शोध के केंद्र में ये सवाल है कि आम लोग फ़ेक न्यूज़ को प्रसारित क्यों कर रहे हैं जबकि वे फ़ेक न्यूज़ के फैलाव को लेकर चिंतित होने का दावा करते हैं. ये रिपोर्ट इन-डेप्थ क्वॉलिटेटिव और इथोनोग्राफ़ी की तकनीकों के साथ-साथ डिज़िटल नेटवर्क एनालिसिस और बिग डेटा तकनीकों की मदद से भारत, कीनिया और नाइजीरिया में अलग-अलग कोणों से फ़ेक न्यूज़ को समझने का प्रयास करती है.”

“इन देशों में फ़ेक न्यूज़ के तकनीक केंद्रित सामाजिक रूप को समझने के लिए ये पहली परियोजनाओं में से एक है. मैं उम्मीद करता हूं कि इस रिसर्च में सामने आई जानकारियां फ़ेक न्यूज़ पर होने वाली चर्चाओं में गहराई और समझ पैदा करेगी और शोधार्थी, विश्लेषक, पत्रकार आगे की जांच में इन जानकारियों का इस्तेमाल कर पाएंगे. ”

वहीं, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ग्रुप के निदेशक जेमी एंगुस कहते हैं, “मीडिया में ज़्यादातर विचार विमर्श पश्चिम में ‘फ़ेक न्यूज़’ पर ही हुआ है, ये रिसर्च इस बात का मज़बूत सबूत है कि बाक़ी दुनिया में कई गंभीर समस्याएं खड़ी हो रही हैं, जहां सोशल मीडिया पर ख़बरें शेयर करते समय राष्ट्र-निर्माण का विचार सच पर हावी हो रहा है.”

“बीबीसी की बियोन्ड फ़ेक न्यूज़ पहल ग़लत सूचनाओं के विस्तार से निपटने में हमारी प्रतिबद्धता की ओर एक अहम क़दम है. इस काम के लिए ये रिसर्च बेशक़ीमती जानकारी उपलब्ध करवाता है.”

रिसर्च में सामने आए अन्य निष्कर्ष

फ़ेसबुक

नाइजीरिया और कीनिया में फ़ेसबुक यूज़र समाचार के फ़र्ज़ी और सच्चे स्रोतों का बराबर ही इस्तेमाल करते हैं और इस बात की ज़्यादा परवाह नहीं करते कि कौन सा स्रोत भरोसेमंद है और कौन सा फ़र्जी. शोध दिखाता है कि भारत में एक बार फिर मामला अलग है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

ख़ास विचारों से प्रभावित लोग फ़ेसबुक पर या तो विश्वसनीय स्रोतों से ज्यादा जुड़े हैं या फिर जाने-पहचाने फ़र्ज़ी स्रोतों से. ऐसा बहुत कम है कि लोग दोनों के साथ जुड़े हों.

हमारे शोध में ये भी पता चला कि जिन लोगों की फ़ेक न्यूज़ के जाने-पहचाने स्रोतों में रुचि है, उनकी राजनीति और राजनीतिक दलों में भी ज़्यादा दिलचस्पी होती है.

पीढ़ियों का फ़र्क

कीनिया और नाइजीरिया में युवा लोग अपने से उम्रदराज़ लोगों की तुलना में क़बायली और धार्मिक निष्ठाओं पर कम ध्यान देते हैं और फ़ेक न्यूज़ शेयर करते समय भी अपनी इन पहचानों से कम ही प्रेरित होते हैं.

लेकिन भारत में हुआ शोध दिखाता है कि यहां के युवा ख़ुद को ऐसी पहचानों से जोड़ते हैं.

इसी कारण शेयर करने का उनका व्यवहार अपने से पहले की पीढ़ी की ही तरह प्रभावित होता है.

शब्दों से ज़्यादा तस्वीरें

ये शोध दिखाता है कि लिखी हुई सामग्री या लेखों की तुलना में तस्वीरों और मीम्स के ज़रिये काफ़ी मात्रा में फ़ेक ख़बरें शेयर की जाती हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

शोध यह भी विस्तार से बताता है कि फ़ेक न्यूज़ कैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की प्रकृति और ऑनलाइन उपलब्ध बहुत सारी जानकारियों को समझने में होने वाली दिक्कत के कारण विज़ुअल मीडिया के ज़रिये फैलती है.

यह रिपोर्ट उसी समय आई है जब फ़ेसबुक, गूगल और ट्विटर मिलकर अपने मंचों पर फ़ेक न्यूज़ के प्रभाव पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए हैं.

वे दिल्ली में बीबीसी बियोन्ड फ़ेक न्यूज़ कॉन्फ़्रेंस में आज इस मसले पर चर्चा करेंगे, जिसका बीबीसी न्यूज़ वर्ल्ड पर 16.30 GMT (भारतीय समयानुसार रात दस बजे) पर प्रसारण होगा.

संपादकों के लिए

फ़ेक न्यूज़ के ‘एंड टु एंड’ रूप को समझने के लिए कई तरह की प्रक्रियाएं अपनाई गईं. इस दौरान भारत में क्वालिटेटिव/इथोनोग्राफ़िक के लिए संस्थाओं ‘थर्ड आई’ और बिग डेटा/नेटवर्क एनालिसिस के लिए अफ़्रीका में फ़्लेमिंगो को शोध में शामिल किया गया.

बिग डेटा/ मशीन लर्निंग: मीडिया में अंग्रेज़ी और स्थानीय भाषाओं में पिछले दो सालों में फ़ेक न्यूज़ पर आई ख़बरों की बारीक़ी से पड़ताल. भारत में 47000; दोनों अफ़्रीकी मार्केट्स में 8,000.

ऑटो एथनॉग्राफ़ी: उन लोगों द्वारा लगभग सात दिनों की अवधि में संदेशों का संग्रह तैयार करना.

सेमिऑटिक एनालिसिस: इकट्ठे किए गए फ़ेक न्यूज़ संदेशों के चिह्नों, प्रतीकों और प्रारूप को समझना.

गहरी आंतरिक गुणात्मक/एथनॉग्राफ़ी: भारत में 10 शहरों में 40 लोगों का 110 घंटे तक गहराई से साक्षात्कार, नाइजीरया के 3 और केन्या के 2 शहरों में 40 लोगों 100 घंटो तक गहराई से साक्षात्कार.

नेटवर्क एनालिसिस: 16,000 ट्विटर प्रोफ़ाइल (370,999 रिलेशनशिप, भारत); 3,200 फ़ेसबुक पेज (भारत); 3,000 पेज (अफ़्रीकी बाज़ारों में).

बड़ी टेक कंपनियों के पैनल की चर्चा बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ पर 16.30 GMT (भारतीय समयानुसार रात दस बजे) पर प्रसारित की जाएगी और वीकेंड पर पुनर्प्रसारण होगा.

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ग्रुप पूरी दुनिया में अंग्रेज़ी और 41 दूसरी भाषाओं में कार्यक्रम का प्रसारण करता है.

ये कार्यक्रम टीवी, रेडियो और डिजिटल माध्यमों से प्रसारित होते हैं. हर हफ़्ते पूरी दुनिया में क़रीब 26.9 करोड़ लोग इन कार्यक्रमों को देखते-सुनते और पढ़ते हैं.

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के तहत आने वाले बीबीसी लर्निंग इंग्लिश दुनिया भर में लोगों को अंग्रेज़ी भाषा सिखाती है. बीबीसी को पूरी दुनिया में हर हफ़्ते 34.6 करोड़ से ज़्यादा लोग देखते-सुनते और पढ़ते हैं.

इसके इंटरनेशनल न्यूज़ सर्विस में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ टेलिविज़न चैनल और बीबीसी.कॉम/न्यूज़,बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ और बीबीसी.कॉम आते हैं. बीबीसी के चौबीसों घंटे चलने वाले अंतरराष्ट्रीय प्रसारणों का मालिकाना हक़ बीबीसी ग्लोबल न्यूज़ लिमिटेड के पास है. बीबीसी का वर्ल्ड न्यूज़ टेलिविज़न दो सौ से ज़्यादा देशों में उपलब्ध है. इसे दुनिया भर में 45.4 करोड़ घरों और होटलों के 30 लाख कमरों में देखा जा सकता है.