पकिस्तान पर आये आर्थिक संकट से बजट में हुआ ये सुधार, अब पाकिस्तानी सेना पर पढ़ी महंगाई की मार

हर साल अपने बजट में बढोतरी कराने वाली पाकिस्तानी सेना ने पहली बार अपने खर्चों में कटौती की घोषणा क्यों की है. इसे लेकर एक तरह हैरानी है तो दूसरी ओर पाकिस्तान के सियासी दल सेना की तारीफ कर रहे हैं लेकिन सेना का ये कहना है कि बेशक उसने अपने खर्चों में कटौती की है लेकिन इसे देश की सुरक्षा और रक्षा की कीमत पर नहीं किया गया है. तो ये देखने वाली बात होगी कि सेना की बजट कटौती का वास्तविक मतलब वास्तव में है क्या.

जैसे ही सेना ने वालिंटियरी तौर पर अपने बजट में कटौती की घोषणा की, उसके तुरंत बाद इमरान ख़ान ने ट्वीट किया, ‘सेना की ओर से अपने ख़र्चे में की कटौती के फ़ैसले का मैं स्वागत करता हूं. हम इन बचाए रुपयों को बलूचिस्तान और क़बायली इलाक़ों में ख़र्च करेंगे.” जाहिर है कि सेना के बढ़ते बजट का असर पाकिस्तान के विकास और बेहतरी के रास्ते पर पड़ रहा है.

हालांकि पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ़ गफ़्फूर ने गोलमोल कर अपनी बात कही. उन्होंने ट्वीट कर कहा, सेना की ये स्वैच्छिक कटौती एक साल के लिए है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम अपने रक्षा खर्च और सुरक्षा पर कटौती से कोई समझौता नहीं करने वाले. अलबत्ता सेना के तीनो अंग अपने आतंरिक खर्च में कटौती करेंगे.

अनुमानित रक्षा बजट

पाकिस्तानी मीडिया का कहना है कि पाकिस्तान का अगले वित्तीय वर्ष का अनुमानित रक्षा बजट 1.270 ट्रिलियन रुपए है जो कि ख़त्म होते वित्तीय वर्ष के रक्षा बजट से 170 अरब रुपए ज़्यादा है. इसमें पूर्व सैनिकों की पेंशन, रणनीतिक खर्च और स्पेशल सैन्य पैकेज में होने वाले खर्च शामिल हैं. जैसे ही पाकिस्तानी सेना ने अपने खर्च में कटौती की घोषणा कि तो मीडिया में तारीफ होने लगी.

हालांकि किसी ने इस बात पर सवाल नहीं उठाया कि सेना के बजट में कटौती की हिम्मत खुद सरकार क्यों नहीं कर पाई.जाहिर है कि पाकिस्तान में सरकार सेना को नहीं बल्कि सेना सरकार को चलाती है. सरकार की तो हिम्मत तक नहीं हुई थी कि वो खुद इस बजट को कम कर पाए, क्योंकि फरवरी में बढ़ते वित्तीय संकट के बाद भी पाकिस्तानी सरकार ने ये फैसला किया था कि देश के रक्षा बजट में कोई कटौती नहीं की जाएगी.

तब पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने कहा था, ”दूसरों के मुक़ाबले पाकिस्तान का रक्षा बजट पहले ही कम है. ऐसे में इसे बढ़ाने की ज़रूरत है न कि घटाने की. हमें अपना सुरक्षातंत्र मज़बूत करने के लिए डिफेंस बजट बढ़ाने ज़रूरत है. लेकिन इसके लिए राजस्व को बढ़ाना होगा.” यहां ये भी गौरतलब है कि पाकिस्तानी सेना केवल सेना का ही काम नहीं देखती बल्कि पाकिस्तान के कई विभाग का काम देखना उसके तहत आता है.

पाकिस्तान का कुल सैन्य खर्च

स्कॉटहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक़, 2018 में पाकिस्तान का कुल सैन्य खर्च 11.4 अरब डॉलर रहा था. ये ख़र्च पाकिस्तान की कुल जीडीपी के चार फ़ीसदी के बराबर है. भारत का सैन्य ख़र्च इसकी तुलना में पिछले साल क़रीब 66.5 अरब डॉलर रहा था.

पाकिस्तानी सेना का कुल खर्च पिछले साल 11.4 अरब डॉलर था
हाल में ये खबरें लगातार आ रही थीं कि किस तरह पाकिस्तान वित्तीय तौर पर मुसीबत में फंसा हुआ है कि लेकिन सेना अपने खर्च में कोई कटौती नहीं कर रही है.

क्या सोचकर सेना ने किया होगा ऐसा

ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के मौजूदा आर्थिक खस्ता हाल के मद्देनजर सेना में भी पिछले कुछ दिनों में मंथन हुआ है. शायद सेना को ये महसूस हुआ कि उसने अगर अपने खर्चों में कटौती नहीं की तो वो अवाम की नजरों में खलनायक बन सकती है, लिहाजा उसे ऐसी घोषणा करनी पड़ी.

हालांकि पाकिस्तान कुछ दिन पहले ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से छह अरब डॉलर का बेल आउट पैकेज हासिल करने में सफल रहा था. लेकिन अभी इस समझौते पर बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स की मुहर नहीं लगी है.

पाकिस्तान पर कितना कर्ज

2018 की ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक़, पाकिस्तान पर 91.8 अरब डॉलर का विदेशी क़र्ज़ है. छह साल पहले जब नवाज़ शरीफ़ ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी तब से इसमें 50 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. पाकिस्तान पर क़र्ज़ और उसकी जीडीपी का अनुपात 70 फ़ीसदी तक पहुंच गया है. कई विश्लेषकों का कहना है कि चीन का दो तिहाई क़र्ज़ सात फ़ीसदी के उच्च ब्याज दर पर हैं.

चीन से कर्ज के खतरे

पाकिस्तान खुद जानता है कि चीन से ज्यादा कर्ज के अपने खतरे भी हैं लेकिन वो इसमें फंसता चला गया है. द सेंटर फोर ग्लोबल डिवेलपमेंट की रिपोर्ट के अनुसार चीनी कर्ज़ का सबसे ज़्यादा ख़तरा पाकिस्तान पर है. चीन का पाकिस्तान में वर्तमान परियोजना 62 अरब डॉलर का है और चीन का इसमें 80 फ़ीसदी हिस्सा है.

पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति जिस कदर बदहाल है, उसमें अगर पाकिस्तानी सेना अपने खर्चों में कटौती नहीं करती तो निश्चित तौर पर अवाम के आंखों में कांटा जरूर बनती

विदेशी निवेश नहीं आ रहा

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की सबसे जटिल समस्या यह है कि कोई विदेशी निवेश नहीं आ रहा है. पाकिस्तान में वित्तीय वर्ष 2018 में महज 2.67 अरब डॉलर का निवेश आया था, जबकि चालू खाता घाटा 18 अरब डॉलर का रहा. आईएमएफ़ ने कहा है कि अगले वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान में महंगाई दर 14 फ़ीसदी तक पहुंच सकती है.

पाकिस्तान में मुश्किल होती जिंदगी

साफ है इस कर्ज का मतलब होगा पाकिस्तान में कई तरह की सब्सिडी का कम होना और लोक लुभावन वादों से पीछे हटना. ये भी हो सकता है कि पाकिस्तान में लोगों की जेब पर टैक्स और दूसरे करों का बोझ बढ़े. विदेश के आयात कम हो जाए तो लोगों के जीवन पर असर भी पड़े. लेकिन पाकिस्तान के पास कोई विकल्प नहीं था कि वो इन कड़े और कड़वे स्वाद वाले रास्ते पर चले.

बर्बादी की कगार पर पाकिस्तान, कभी भी ध्वस्त हो सकता है सारा सिस्टम

ये भी बात साफ है कि पाकिस्तान के पड़ोसी देशों में अफगानिस्तान तक विदेशी निवेश को आकर्षित कर पा रहा है लेकिन पाकिस्तान में कोई विदेशी संस्था निवेश करने की इच्छुक नहीं है. वो इसके लिए पाकिस्तान में सकारात्मक माहौल बनते देखना चाहते हैं. ये भी बात सही है कि आतंकवाद के पोषण ने पाकिस्तान का बंटाधार भी किया और उसकी इमेज को बुरी तरह ठेस भी पहुंचाई.