नसीमा बेगम ने लोगों के घरों में कार्य कर अपनी पांच बेटियों के साथ किया ये…

छोटी-मोटी मुसीबतों से हारने  जिंदगी को बोझ समझने वालों को नसीमा बेगम से सीख लेनी चाहिए. खुद अंगूठा टेक, पति दिहाड़ी मजदूर. प्रातः काल रसोई बनी तो शाम का कोई भरोसा नहीं, लेकिन एजुकेशन पर पूरा इल्म. तय किया कि बेटियों को हर हाल में पढ़ाएंगी.

लोगों के घरों में कार्य किए, मुसीबत उठाईं, लेकिन पीछे नहीं हटीं. पांच-पांच बेटियों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बना दिया. ग्रेजुएशन कराकर बड़ी बेटी की विवाह कर दी. दो बेटियां अपनी पढ़ाई के साथ स्कूल में पढ़ा भी रही हैं.

शिंदे की छावनी के पास लक्ष्मण तलैया पर रहने वाली नसीमा बेगम जिस समाज से हैं, उसमें बेटियों को पढ़ाने का रिवाज नहीं है. कोई चिंता भी नहीं. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा भी यहां कोई खास प्रभाव नहीं कर सका है. खुद नसीमा को न लिखना आता, न ही पढ़ना. पति इब्राहिम खान दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. कमाई का कोई ठिकाना नहीं. कभी कई दिन तक घर में एक पैसा नहीं आता, लेकिन नसीमा ने पराजय नहीं मानी, न ही भाग्य को कोसा. जो कर सकती थीं, वह किया. यह जरूर तय कर लिया कि बेटियों को निर्बल नहीं होेने देंगी. लोगों के घरों में कार्य किए, परेशानियां उठाईं, लेकिन बेटियों की पढ़ाई से कोई समझौता नहीं किया. सात जनों के रहने के लिए एक कमरे का मकान  उसमें भी सुविधाओं के नाम पर कंप्यूटर. ऐसी हैं नसीमा.

सबसे बड़ी बेटी तरन्नुम को ग्रेजुएशन कराकर विवाह कर दी. दूसरे नंबर की तबस्सुम बीकॉम के बाद बैचलर ऑफ शिक्षा कर रही है. तीसरे नंबर की शाहीन ने केआरजी कॉलेज से बीकॉम किया है. चौथे नंबर की मुस्कान उसी कॉलेज में बीकॉम द्वितीय साल में है. सबसे छोटी बेटी खुशबू ने इस वर्ष 12वीं की इम्तिहान पासकी है  अब कॉलेज में प्रवेश लेगी.

तबस्सुम  शाहीन बन गईं टीचर

नसीमा की दो बेटियां तबस्सुम  शाहीन अपनी पढ़ाई के साथ-साथ घर से थोड़ी दूरी पर स्थित एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाती भी हैं. मां नसीमा उनकी तनख्वाह नहीं लेतीं. यही कहती हैं कि जो भी कमा रही हो उसे अपनी पढ़ाई में ही लगाओ.