दृष्टिबाधित होने के बावजूद देश के लिये कॉमनवेल्थ पैरा जूडो चैंपियनशिप में भाग लेंगी सरिता

आंखों में पूरी लाइट नहीं, लेकिन इनके सपने बड़े हैं  इन्हीं सपनों को हासिल करने निकल पड़ी हैं होशंगाबाद के पांजराकलां गांव की सरिता चौरे. बेहद गरीब परिवार की सरिता जन्म से दृष्टिबाधित हैं  सितंबर में इंग्लैंड में होने जा रही कॉमनवेल्थ पैरा जूडो चैंपियनशिप में 48 किग्रा जूनियर वर्ग में देश का अगुवाई करेंगी. उनके साथ भोपाल की पूनम शर्मा  स्वाति शर्मा भी इंग्लैंड जाएंगी. पूनम 2018 में हुए वर्ल्ड कप  एशियन पैरा गेम्स में भाग ले चुकी हैं.

दोनों भोपाल के एक व्यक्तिगत जूडो क्लब में तैयारी कर रही हैं. जबकि सरिता बहन ज्योति  पूजा चौरे के साथ गांव में ही प्रैक्टिस कर रही हैं. तीनों बहनें दृष्टिबाधित हैं  नेशनल पैरा जूडो खिलाड़ी हैं. सरिता को इंग्लैड जाने के लिए भारतीय ब्लाइंड एंड पैरा जूडो एसोसिएशन के खाते में वीसा, किट चार्ज आदि के लिए 1 लाख 12 हजार रुपए जमा करने थे, लेकिन चौरे समाज ने तीन दिन में सवा लाख रुपए जुटाकर मदद की.

कोच नहीं है, इसलिए बहनें ही गांव में ट्रेनिंग दे रहीं

इंग्लैंड की तैयारियांे के लिए हमारे पास जूडो एकेडमी या कोच नहीं है, इसलिए दोनों बहनें मेरी तैयारी कराने गांव आ गई हैं. आठवीं के बाद स्कूल की एक टीचर की मदद से हमें इंदौर के एक आवासीय स्कूल में प्रवेश मिल गया, लेकिन दृष्टिबाधित होने की लाचारी ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा. अपनी सुरक्षा को लेकर हम तीनों ही डरे रहते थे. 2017 में दलित संगठन की मदद से भोपाल की साइट सेवर संस्था ने जूडो ट्रेनिंग आयोजित की, जिसमें हमने भाग लिया  यहीं से हमारी जिंदगी बदल गई. मुसीबत में खुद की रक्षा का विश्वास हमारे भीतर आ गया.

तभी दृष्टबाधितों के लिए स्टेट लेबल की जूडो प्रतियोगिता पता चला. पूजा  मैंने इसमें भाग लिया  हम दोनों 2018 में लखनऊ में हुई नेशनल प्रतियोगिता के लिए सिलेक्ट हो गए.दोनों ब्रांज मेडल जीते. 2019 में हम तीनों ही नेशनल में पहुंचे. यहां पूजा को सीनियर वर्ग में ब्रांज  मुझे जूनियर वर्ग में सिल्वर मेडल मिला.

आज गांव में जश्न का माहौल :सरिता के पिता लखन लाल चौरे बताते हैं कि बेटियों का जन्म हुआ तो क्या-क्या नहीं सुना  सहा, लेकिन आज हमारे घर  गांव में उत्साह का माहौल है. मां कृष्णा बताती हैं कि बेटियां जब स्कूल में थीं तो कभी चाचा तो कभी पापा स्कूल छोड़ने जाते थे. हम हमेशा भय  तकलीफों में जिए. जब से बेटियों ने मैडल जीते तो आज बेटियों के कारण गांव का नाम रोशन हो रहा है. चौरे समाज के सचिव जयनारायण पटेल बताते हैं कि समाज ने तीन दिन में पैसे जुटा लिए, क्योंकि बेटी गांव का गौरव बन चुकी है.

तीन वर्ष में मप्र को दिलाए 7 गोल्ड ,13 सिल्वर ,14 ब्रांज :साइट सेवर मप्र की डायरेक्टर अर्चना भंबल बताती हैं कि हमने तो बच्चियों को सुरक्षा की दृष्टि से इस ट्रेनिंग की आरंभ की थी लेकिन इन बच्चियों ने बदले में हमारी झोली मैडल से भर दी. पिछले तीन वर्ष में ये लड़कियां सीनियर  जूनियर वर्ग में कुल 7 गोल्ड ,13 सिल्वर  14 ब्रांज जीत चुकी हैं. इसी वर्षफरवरी में गोरखपुर में हुई नेशनल प्रतियोगिता में भी इन लड़कियों ने 5 सिल्वर  4 ब्रांज मेडल जीते हैं.