दुनिया का एक ऐसा मंदिर जहा भगवान शिव से पहले की जाती है रावण की पूजा , जानिए ये है इसके पीछे का गहरा रहस्य

दुनिया में ऐसे कई चमत्कारी मंदिर हैं, जो अपने आप में एक अनोखी कहानी समेटे हुए हैं. वैसे तो दुनियाभर में भगवान शिव के अनेक मंदिर हैं, जहां उनकी बड़ी श्रद्धा से पूजा होती है, लेकिन आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां भगवान से पहले रावण की पूजा होती है. इसके पीछे एक गहरा रहस्य छुपा हुआ है.
इस मंदिर को कमलनाथ महादेव के नाम से जाना जाता है. झीलों की नगरी उदयपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर झाड़ोल तहसील में आवारगढ़ की पहाड़ियों पर शिवजी का यह प्राचीन मंदिर स्थित है. पुराणों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना खुद लंकापति रावण ने की थी.
कहते हैं कि यही वह जगह है, जहां रावण ने अपना सिर काटकर भगवान शिव को अग्निकुंड में समर्पित कर दिया था. तब रावण की इस भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण की नाभि में अमृत कुण्ड स्थापित किया था.
इस जगह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है, क्योंकि मान्यता है कि शिवजी से पहले अगर रावण की पूजा नहीं की जाए तो सारी पूजा व्यर्थ जाती है.
पुराणों में कमलनाथ महादेव की एक कथा लिखी हुई है, जिसके अनुसार एक बार रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचा  तपस्या करने लगे. उसके सख्त तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण से वरदान मांगने को कहा. तब रावण ने भगवान शिव से लंका चलने का वरदान मांग लिया. तब भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में उसके साथ जाने को तैयार हो गए.
भगवान शिव ने रावण को एक शिवलिंग दिया  यह शर्त रखी कि अगर लंका पहुंचने से पहले तुमने शिवलिंग को भूमि पर कहीं भी रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा. चूंकि कैलाश पर्वत से लंका का रास्ता बहुत ज्यादा लंबा था  रास्ते में रावण को थकान महसूस हुई तो वो आराम करने के लिए एक जगह पर रुक गया  ना चाहते हुए भी उसने शिव लिंग को भूमिपर रख दिया.
आराम करने के बाद रावण ने शिवलिंग को उठाना चाहा, लेकिन वह टस से मस ना हुआ. तब रावण को अपनी गलती का अहसास हुआ  पश्चाताप करने के लिए वह उसी स्थान पर फिर से तपस्या करने लगे. वो दिन में एक बार भगवान शिव का सौ कमल के फूलों के साथ पूजन करता था. ऐसा करते-करते रावण को साढ़े बारह वर्ष बीत गए.
जब ब्रह्मा जी को इस बात का पता लगा कि रावण की तपस्या पास होने वाली है तो उन्होंने उसकी तपस्या विफल करने के लिए पूजा के वक्त एक कमल का फूल कम कर दिया. बाद में जब रावण ने देखा कि भगवान शिव की पूजा करने के लिए एक फूल कम पड़ रहा है तो उसने अपना सिर काटकर भगवान शिव को अर्पित कर दिया. रावण की इस भक्ति से भगवान शिव प्रसन्न हो गए  उन्होंने वरदान स्वरुप उसकी नाभि में अमृत कुण्ड की स्थापना कर दी. साथ ही बोला कि यह जगह अब से कमलनाथ महादेव के नाम से जाना जाएगा.