दिल्ली में पहली बार दो दिवसीय दलित साहित्य महोत्सव का आयोजन

राजधानी दिल्ली में पहली बार दो दिवसीय दलित साहित्य महोत्सव का आयोजन 3 फरवरी, 2019 को दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में हुआ. ‘साहित्य की एक नई दुनिया संभव है’ इस सूत्र के ऐलान के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की गई. आयोजकों के मुताबिक, इस कार्यक्रम में देशभर के करीब 19 भाषाओं के साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया.

कार्यक्रम के पहले दिन साहित्यकारों ने देशभर में हो रही मॉब लिंचिंग की घटना पर चिंता जताई. जातिगत हिंसा का मुद्दा इस कार्यक्रम में साहित्यकारों ने प्रमुखता से उठाया. देश में जातिगत भेदभाव के खिलाफ कड़े कानून होने के बावजूद आए दिन हो रहे इसके उल्‍लंघन पर भी साहित्यकारों ने अपनी बात रखी.

कार्यक्रम की जानकारी

क्या है ‘दलित साहित्य’?

कार्यक्रम में दलित साहित्‍य की अहमियत पर भी चर्चा हुई. ‘दलित साहित्य’ का मतलब है, दलितों के जीवन और उनकी समस्याओं से पैदा हुआ लेखन. देशभर में चल रहे छात्र आंदोलनों के बीच दलित और शोषित तबका अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है.

दलित साहित्य लोगों की परेशानी, उस पर हो रहे जुल्मों को समाज के सामने लाने का काम कर रहा है. दलित साहित्य सिर्फ दलितों का ही नहीं, बल्कि उन सभी लोगों का है, जो अत्याचारों के खिलाफ संघर कर रहा हैं.

कार्यक्रम में भाग लेते हुए साहित्यकार मोहनदास नैमिशराय ने कहा कि दलित साहित्य विलाप का साहित्य नहीं, बल्कि उनकी पीड़ा, प्रखर आवाज और उनके संघर्षों का साहित्य है.

अंबेडकरवादी लेखक संघ के डॉ. बलराज सिंह मार ने समाज के जातिवादी स्वरूप और सत्ता पर उनकी पकड़ को लेकर चिंता जाहिर की.

क्या है दलित साहित्य महोत्सव का एजेंडा?

दलित साहित्य महोत्सव का आयोजन किरोड़ीमल कॉलेज में

इस कार्यक्रम का कई एजेंडे पर चर्चा की गई.

ब्राह्मणवाद का विरोध: इस कार्यक्रम के जरिए देशभर में सभी सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं में चल रहे जातिवादी शोषण के खिलाफ संगठित होने की जरूरत पर जोर दिया गया. साथ ही इसके लिए समाज के ‘ब्राह्मणवादी व्यवस्था’ को इसका जिम्मेदार बताया गया.

महाराष्ट्र के साहित्यकार लक्ष्मण गायकवाड़ ने कहा कि दलितों को इस लोकतंत्र में साहित्यिक भागीदारी के साथ-साथ राजनीतिक भागीदारी भी बढ़ानी होगी.

आरक्षण: इस मौके पर सवर्ण आरक्षण का मुद्दा भी चर्चा का केंद्र बना रहा. दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिक समिति के सदस्य और रिदम के निदेशक डॉ. हंसराज सुमन ने कहा कि आरक्षण खत्म किए जा रहे हैं, साजिश के तहत सामाजिक न्याय से हटाकर आर्थिक आधार पर आरक्षण करने की कोशिश की जा रही है.

सोमवार को समाप्त हो रहे इस दो दिवसीय दलित साहित्य महोत्सव का समापन देशभर से आए कलाकारों के लोकगीतों और कार्यक्रमों से होगा. इस मौके पर राजधानी दिल्ली के कई विश्वविद्यालयों और संस्थानों जैसे- किरोड़ीमल कॉलेज, आर्यभट कॉलेज, रामानुज कॉलेज, जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र बड़ी संख्या में शामिल हुए.