जानिए गठबंधन टूटने के बाद, सपा के पास आई ये बड़ी चुनौती

बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद 11 विधानसभा सीटों पर होने वाली उप चुनाव की इम्तिहान समाजवादी पार्टी को भी भारी पड़ेगी.

केवल रामपुर सीट को छोड़ दें तो अन्य दस विधानसभा क्षेत्रों में 2017 के चुनाव में सपा की दशा पतली रही, जबकि उसका कांग्रेस पार्टी से गठबंधन था. सपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिम वोटों का धुव्रीकरण अपने पक्ष में करना है.

भाजपा उक्त 11 सीटों में से नौ पर काबिज है जबकि सपा और बीएसपी के पास एक-एक सीट थी. ऐसे में बीजेपी के सामने पुराने प्रदर्शन का दोहराने की चुनौती है तो गठबंधन बिखरने के बाद सपा-बसपा की भी अपनी सीटें कायम रखनी की इम्तिहान होगी. बीएसपी पहली बार उपचुनाव में उतरेगी  लोकसभा चुनाव में साथ रही सपा सामने खड़ी होगी. ऐसे में सपा के लिए अपनी ताकत दिखाने का मौका है. इससे पूर्व गोरखपुर, फूलपुर संसदीय क्षेत्रों  बिजनौर की नूरपुर सीट पर सपा को सफलता मिली थी परंतु तब बीएसपी और रालोद जैसे दल भी समर्थन में थे.

रामपुर से उम्मीद ज्यादा

सपा को रामपुर विधानसभा सीट से उम्मीद रहेगी क्योंकि आजम खां के इस्तीफे से रिक्त हुई इस सीट पर 2017 के चुनाव में भी सपा को 1,02,100 वोट मिले थे, जबकि अन्य सीटों पर प्रदर्शन हल्का ही रहा. कांग्रेस पार्टी से गठबंधन में लखनऊ कैंट सीट पर यादव परिवार की बहू अर्पणा यादव 61,606 वोट ही बटोर पायी थीं. टूंडला, गंगोह, जैदपुर और जलालपुर में भी सपा का प्रदर्शन संतोषजनक रहा था परंतु जैदपुर और बल्हा में दशा पतली रही.

तो बीएसपी 10 सीट न जीत पाती : रामगोपाल

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने बसपा प्रमुख मायावती के बयान पर पलटवार करते हुए बोला है कि यादव वोट ट्रांसफर नहीं होते तो बीएसपी दस सीटें नही जीत पाती. उन्होंने बोला कि समाजवादी पार्टी बीएसपी से बड़ी और पुरानी पार्टी है. कभी कोई जाति पूरी तरह किसी दल के साथ नहीं होती है. अगर बसपा अकेले उप चुनाव लड़ेगी तो समाजवादी पार्टी भी अकेले लडऩे के लिएतैयार है.

उधर मुलायम सिंह की छोटी बहू अपर्णा यादव ने भी ट्वीट कर नाराजगी जाहीर की है. उन्होंने बोला कि शास्त्रों में अच्छा ही बोला गया है कि जो सम्मान पचाना नहीं जानता वो अपमान भी नहीं पचा सकता.