जानिए ऐसे पहचाने बहरेपन के लक्षणों को

कान ध्वनि तरंगों को मस्तिष्क तक पहुंचाता है. सुनने की क्षमता से ही हमारे आसपास उत्पन्न हो रही किसी ध्वनि को हम सुन पाते हैं. सुनने की कमी अकेलापन महसूस कराती है जिससे पारिवारिक और व्यावसायिक ज़िंदगी प्रभावित होता है.

लक्षणों को पहचानें –
जन्म से एक वर्ष तक की आयु या बाद में बहुत तेज आवाज में भी घबराने, चौंकनें और डरने जैसी रिएक्शन न देना.
आवाज देने पर कोई हरकत न करना.
दो साल की आयु में भी बोल न पाना.
टीवी या रेडियो को बहुत ज्यादा तेज आवाज में सुनना.
अभिभावकों द्वारा नए शब्दों को न समझ पाना.

वजह: कान के पर्दे में छेद, कान की नस का बेकार होना, दिमाग में किसी प्रकार के ट्यूमर का बनना, जन्मजात न सुन पाना या कान की विकृति से भी यह समस्या हो सकती है.

जांचें: मूल वजह को जानने के लिए बच्चे और बड़े दोनों में भिन्न-भिन्न जांचें की जाती हैं. ऑबिट्री ब्रेन स्टेम रिस्पॉन्स (एबीआर) बच्चों में की जाती है  बड़ों में रोग के कारण को जानने के लिए ऑडियोमेट्री जाँच होती है. आजकल जन्म के तुरंत बाद ही बच्चे में ऑटोएकॉस्टिक एमिशन (ओएई) मशीन से कान से जुड़ी समस्या का पहले ही पता लगा लिया जाता है.

उपचार: पांच वर्ष की आयु तक बच्चों के दिमाग का विकास होता रहता है. इसलिए लक्षण दिखें तो तुरंत ईएनटी विशेषज्ञ को दिखा लेना चाहिए. ऐसे में हियरिंग एड मशीन को कान के बाहर लगाने की सलाह दी जाती है. इससे भी सुनाई न दे तो सर्जरी कर कॉक्लियर इंप्लांट करते हैं