जयपुर की जेल में कातिलाना हमला

एक बार फिर जयपुर की जेल में आजमगढ़ के उन युवाओं पर कातिलाना हमला हुआ जिन्हें 11 साल पहले जब उनके खेलने खाने के दिन थे तब हुकूमत ने कैद कर दिया था. इसी जेल में 2009 में आजमगढ़ के सरवर और अन्य को जेल प्रशाशन द्वारा उस समय लाठियों से पीटा गया जब वह जेल में ईद की नमाज़ अदा करना चाहते थे.
इससे पहले भी जयपुर ही नहीं यरवदा जेल में क़तील सिद्दीकी की अंडा सेल में जून 2012 में हत्या, तिहाड़ जेल में 2010 में सलमान पर धारदार हथियार से कातिलाना हमला, पेशी से लखनऊ जेल लाते वक़्त खालिद मुजाहिद की हत्या, अहमदाबाद जेल में अक्टूबर 2014 में कैदियों को बुरी तरह से मारापीटा गया, वारंगल में जेल से पेशी के लिए ले जाते वक्त गोलियों से भून दिया, भोपाल जेल से निकालकर की गई हत्याओं को हम नहीं भूलें हैं. आज सिवान की मिट्टी में समा गए कामरेड चंद्रशेखर का शहादत दिवस है. ठीक ऐसी ही शहादतें पिछले दस साल आज़मगढ़ बाटला हाउस के बाद दे रहा है. हर दिन अपने बच्चों के बारे में अफ़वाहों ने हमारी माओं के आसुओं को सुखा दिया है कि बच्चे उनके आसुओं को देखकर दुखी न हो जाएं.

आतंकवाद के कलंकित ठप्पे के खिलाफ हमने प्रतिरोध की वो पहचान बनाई जिसने पूरे देश में इस बहस को स्थापित किया कि आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम युवाओं को हर उस हुकूमत ने फसाया जिसे इस देश पर राज करना था. शाहिद आज़मी से लेकर जो शहादतें आज़मगढ़ ने दी इतिहास उसे जरूर दर्ज करेगा कि कितने भी मुश्किल हालात हों इस संघर्ष में सब एकजुट थे.

आज जब एक बार फिर वारंगल, भोपाल की तरह फ़ैसले आने के ठीक पहले जिस तरह जयपुर जेल में कातिलाना हमला हुआ उसने साफ किया है कि वो चाहते हैं कि हमारे बच्चों के ऊपर जो आतंकवाद का ठप्पा लगा है वो लगा रहे पर उनके इस मंसूबे को हम कामयाब नहीं होने देंगे.