जनता से दूर जा रही कांग्रेस, जानिए क्या होने वाला है अब…

सीधे शब्दों में कहे तो 1920 कांग्रेस के विचार काफी अलग थे. वो जनता, मजदूर वर्गों और किसानों तक पहुंचने की कोशिश करते थे. पहले कांग्रेस के उद्देश्य को परिभाषित किया गया.

 

सभी वैध और शांतिपूर्ण तरीकों से स्वराज्य की प्राप्ति, कांग्रेस के संविधान के अनुच्छेद का गठन भी किया गया, जो एक और संकल्प के माध्यम से प्रमाणित हुआ.

सीडब्ल्यूसी पार्टी के खोखले तंत्र पर चर्चा नहीं करता है. नागरिक समाज के साथ विचार विमर्श करना अतीत की बात है. संक्षेप में कहा जाय तो देश की सबसे पुरानी पार्टी अलोकप्रिय हो गई है. एक खंडित विपक्ष और क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय दलों में इसका विखंडन जारी है.

जो दूर से भाजपा के प्रभुत्व को चुनौती नहीं देते हैं, सवाल यह है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी का खत्म होने का खतरा है.1920 से 1923 तक कांग्रेस के प्रस्तावों की एक पुस्तिका इलाहाबाद लॉ जर्नल प्रेस में छपी और पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रकाशित की गई.

जो उस समय आईएनसी महासचिव थे. अभिलेखीय दस्तावेज़ एक दिलचस्प पढ़ने के लिए बनाता है क्योंकि यह हमें उन मुद्दों और घटनाओं के बारे में बताता है जो कांग्रेस द्वारा जब्त किए गए थे, और उनके चारों ओर चर्चा और बहस हुई. उन दिनों का INC अपने संवादों के बारे में काफी खुला और स्पष्ट था और स्वतंत्रता, नेतृत्व, कार्यक्रमों और फंडों से संबंधित विवादास्पद मुद्दों को हल करने के लिए बराबर सामने आता था.

उदाहरण के लिए, क्या कांग्रेस किसानों की सभी मांगों का पूरा समर्थन करती है? या क्या पार्टी का उन पर कोई रुख है? यदि हां, तो समझौतों और असहमति के वे बिंदु क्या हैं?

पार्टी का शीर्ष निकाय भारत के किसी भी मुद्दे पर विचार-विमर्श नहीं किया गया है – राजनीतिक अभियान के दायरे से परे कांग्रेस कार्य समिति शायद ही कभी मिलती है, और जब ऐसा होता है, तो यह संकट से उबरने के लिए संघर्ष करता है ताकि पार्टी के नेतृत्व के चेहरे को संकट में डाला जा सके.

ये वो पार्टी है जिसके पास कोई आत्मा नहीं है. एक ऐसी पार्टी जिसे पता ही नहीं है कि आखिर करना क्या है. ऐसा लग रहा है मानो ये पार्टी पूरी तरह सड़ गई हो. यहां ऐसे नेताओं का जमावड़ा है जिसका लोगों के साथ न के बराबर कोई सम्पर्क है. इतना ही नहीं ये एक ऐसी पार्टी बन गई है जिसका अपने इतिहास के साथ भी कोई जुड़ाव नहीं रहा.