छात्रों ने अपने कॉलेज में पढ़ रहे कश्मीरी मुस्लिम छात्रों को हटाने की शुरू कर दी मांग

16 फरवरी को देहरादून ने खुद को असामान्य स्थितियों में उलझा हुआ पाया. यहां के शिक्षण संस्थानों के छात्रों ने अपने कॉलेज में पढ़ रहे कश्मीरी मुस्लिम छात्रों को हटाने की मांग शुरू कर दी थी. उनका अपराध उनका नाम था.

14 फरवरी को पुलवामा आतंकी हमले के कुछ मिनट बाद देशभर में कश्मीरी छात्रों पर ‘उत्सव मनाने’ के आरोप में देशद्रोह के आरोप जड़ दिए गए. बहरहाल, देहरादून में परिस्थिति अप्रत्याशित रूप से बदल गई. अगले कुछ दिन किसी क्राइम थ्रिलर से कम नहीं रहे. यह बात खासकर उस सड़क के लिए है जिसे दो सर्वश्रेष्ठ निजी कॉलेजों बीएफआईटी और डॉल्फिन इंस्टीट्यूट से जुड़े होने की वजह से जाना जाता है.

धमकी, डर और जगह छोड़ना

जाविद परसा, वालंटियर क्विंट को बतायामेरे फोन की घंटी 16 फरवरी से बजना शुरू हुई और अब भी यह सिलसिला थमा नहीं है. जिन कश्मीरी छात्रों को परेशान किया जा रहा था, उनकी ओर से वो कॉल परेशानी में किए गए थे. वो चाहते थे कि उनका बचाव किया जाए और उन्हें घर भेजा जाए. पहले कुछ कॉल देहरादून के सुधोवाला क्षेत्र के गर्ल्स नेस्ट हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों के एक समूह की ओर से आए थे. वो इतनी डरी हुई थीं कि चाहती थीं कि उन्हें एयरलिफ्ट किया जाए. हमने हर किसी को चेताया और चीजों को तेजी से ठीक किया.

कुछ घंटों के भीतर ही देहरादून में पढ़ रहे कुछ और कश्मीरियों की ओर से ऐसे ही कॉल आने शुरू हो गए. वो चाहते थे कि उन्हें यहां से निकाला जाए.

नाजिया*, देहरादून के एक निजी कॉलेज में पहले वर्ष की छात्रा ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बतायाहम बहुत असुरक्षित महसूस कर रहे थे. हमने अपने दोस्तों से हमारे कम्यूनिटी को मिल रही धमकियों के बारे में कई कहानियां सुनी थीं. अचानक सुरक्षित देहरादून हमारे खिलाफ हिंसक हो गया. यह कुछ ऐसा था जिसकी हमने कभी उम्मीद नहीं की थी.

ऐसी घटनाओं के डर से कॉलेजों ने कहना शुरू कर दिया है कि वो अब आगे से कश्मीरी छात्रों का दाखिला नहीं लेंगे.

डॉल्फिन इंस्टीट्यूट के चेयरमेन अरविंद गुप्ता ने द क्विन्ट को बतायाहां, स्थिति तनावपूर्ण थी. मगर, एक संस्थान के रूप में हम किसी खास समुदाय के खिलाफ नहीं हैं. हम देश विरोधी सोच के खिलाफ हैं. यह सोच किसी भी राज्य या धर्म से हो सकती है. हम ऐसी सोच वालों को दाखिला नहीं देंगे.

गरमागरमी के इस माहौल में बीएफआईटी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ असलम सिद्दीकी ने कहा कि वे कश्मीरी छात्रों का दाखिला नहीं करेंगे. डॉ असलम ने कहा, “नहीं, मामला ऐसा नहीं है. हम बेशक उन्हें दाखिला देंगे, हालांकि वह राज्य सरकार के निर्देशों के अनुरूप होगा.”

यह पूछे जाने पर कि उनके इंस्टीट्यूट से कितने छात्रों ने कैंपस छोड़ दिया है, उन्होंने कहा,

कई लोग यहां हैं और आपको नहीं दिखता कि स्थिति सामान्य हो रही हैं. सबकुछ सामान्य है. कॉलेज सही तरीके से चल रहे हैं. चीजें सामान्य गति से चल रही हैं.

ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार हमले की आशंका में करीब 1000 छात्रों ने शहर छोड़ दिया है.

अब आगे क्या?

पीडीपी विधायक एजाज मीर ने द क्विंट को बतायास्थिति का जायजा लेने देहरादून आने के बाद मैं संतुष्ट था. हमारे छात्रों को प्रशासन की ओर से पुख्ता सुरक्षा दी जा रही थी. बहरहाल शुरुआती कुछ दिन तनाव भरे थे. वहां हुई नारेबाजी ने कॉलेज अधिकारियों को चरम स्थिति तक पहुंचा दिया था. बाद में चीजें ठीक होने लगीं.

जब कश्मीरी छात्रों के बारे में उत्तर में खबर पहुंची, तो एजाज मीर छात्रों की मदद करने देहरादून पहुंचे. जो लोग वापस जाना चाहते थे, उनके साथ चले गए. हालांकि कुछ लोग वापस आ गए हैं.

मीर ने आगे कहा,

कश्मीरी लोग भारत का हिस्सा हैं. ऐसे लोग बहुत कम हैं जो अलग-थलग होकर अपना जीवन जी पाएंगे. हालांकि प्रशासन और पुलिस बहुत मददगार रहे. वास्तव में हम उम्मीद करते हैं कि छात्र जल्दी लौट जाएं और फिर से उनका कॉलेज जीवन शुरू हो.

जब द क्विन्ट ने गर्ल्स नेस्ट हॉस्टल की वार्डन से बात की, तो उन्होंने ‘पलायन’ के लिए उकसाने वाली किसी घटना से इनकार किया.

किसी अनहोनी को लेकर लड़कियां डरी हुई थीं. लेकिन, कोई उकसा नहीं रहा था. वो खुद से गईं. हम नहीं जानते कि वो कब लौटेंगी.

यहां तक कि हॉस्टल के आसपास के कुछ स्थानीय लोगों ने भी ‘न कुछ देखा, न कुछ सुना’.

हॉस्टल के पास एक फल बेचने वाले राजू* ने कहाकश्मीरी लड़कियों का मुझपर बकाया है, मुझे उम्मीद है कि वो जल्द लौटेंगी. हमने सुना है कि वो इसलिए गईं क्योंकि देश विरोधी नारे लगा रही थीं, लेकिन निजी तौर पर मैंने कुछ नहीं सुना.

करीब 1000 कश्मीरी क्लास और सत्र को अधूरा छोड़ते हुए अपने-अपने कॉलेज छोड़ चुके हैं. क्या कॉलेज किसी तरह से उनकी मदद करेगा?

अरविंद गुप्ता, चेयरमैन, डॉल्फिन इंस्टीट्यूटहमने उन्हें पूरी मदद का भरोसा दिलाया है। हम यह भी सुनिश्चित करेंगे कि जब वे लौटेंगे तो उनके लिए अतिरिक्त क्लास हो

“दाखिला से पहले कश्मीरी छात्रों का वेरिफिकेशन करें”

राज्य सरकार इस मुद्दे पर चुप रही है. हालांकि उत्तराखंड के उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने न्यूज 18 से कहा कि अगले सेशन से संस्थानों को निश्चित रूप से कश्मीरी छात्रों का पुलिस से वेरिफिकेशन कराना होगा.

उन्होंने कहा,

हम जम्मू और कश्मीर के अधिकारियों से संभावित छात्रों के बारे में पूरा ब्योरा हासिल करेंगे- उनका अतीत और पारिवारिक इतिहास आदि. यह संबंधित कॉलेज के लिए अनिवार्य होगा कि वह स्थानीय पुलिस से सत्यापन कराएं.

इसके अलावा इस सरकार ने कश्मीरी छात्रों के पलायन के लिए मजबूर करने की बात को न स्वीकार किया और न ही इसकी निंदा की.

जम्मू-कश्मीर स्थित एनजीओ के साथ खालसा ऐड ने छात्रों को सुरक्षित उनके घर पहुंचाने में मदद की. खालसा ऐड ने छात्रों के लिए पड़ाव बन चुके चंडीगढ़ में उनके रहने और बस से वहां तक उन्हें पहुंचाने का उठाया.

वॉलंटियर जाविद बरसा ने द क्विन्ट को बतायाखालसा ऐड ने छात्रों के लिए 24 घंटे बसों का इंतजाम किया. अगर कोई छात्र फंस गया है और उसे हवाई मार्ग से तत्काल मदद की जरूरत है, तो कारोबारी लोग उसका खर्च उठा रहे हैं. चारों ओर से हमें मदद मिली है.

छात्रों के बगैर कॉलेज और हॉस्टल सुनसान हो गए हैं. फिर भी ये वही सड़क है जिसने इतना सब देखा, फिर भी कुछ नहीं देखा.

अपने स्वभाव, संस्कृति और अनुकूल वातावरण के कारण देहरादून कश्मीरियों के लिए पसंदीदा जगह रहा है. उम्मीद है कि छात्र उसी सोच के साथ यहां लौटें जिस सोच के साथ शुरू में वो यहां आए थे.