आईआईटी भुवनेश्वर के वैज्ञानिक का कहना है कि चक्रवात तो हमेशा आते हैं. लेकिन उसे बढ़ाती है उसकी आवृति. कि वह कितनी आवृति के साथ आ रहा है. यह बात उन्होंने बंगाल की खाड़ी पर किए अवोलकन के आधार पर कही.
उत्तर पश्चिमी प्रशांत से सटी हुई होने के कारण यह संसार में ऐसी स्थान है जहां सबसे अधिक तूफान आते हैं. बंगाल की खाड़ी में आए तूफान के कारण कई स्थान लैंडफॉल हुए हैं. जैसे इंडोनेशिया व चीन. हाल ही में तितली चक्रवात ओडिशा व आंध्र प्रदेश में आया. वर्ष 2013 में फाइलिन नाम का चक्रवात आया व वर्ष 2014 में हुदहुद चक्रवात आया. यह सभी अक्तूबर माह में आए. मानसून में चक्रवात कम ही आते हैं क्योंकि हवा का दबाव अधिक होता है.
भविष्यवाणी करना मुश्किल
ओडिशा
गवर्नमेंट की भी आलोचना की गई क्योंकि वह तितली चक्रवात के कारण हुए लैंडफॉल
व भारी बारिश के बारे में सटीक जानकारी नहीं दे पाई
. बारिश से कई
एरिया जलमग्न हो गए
. वैज्ञानिकों का कहना है कि बजटीय
व मौसम से संबंधित कारकों के कारण भविष्यवाणी करना
कठिन होता है
.
अमेरिका में बादलों में विमान से ही नमी का स्तर व चक्रवात से संबंधित आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं. हिंदुस्तान में समुद्रीय तटों पर आने वाले चक्रवात के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि वह सैटेलाइट तस्वीरों पर ही बहुत ज्यादा हद तक भरोसा करते हैं. जिससे नमी की मात्रा व तीव्रता से संबंधित बहुत ज्यादा कम ही आंकड़े मिल पाते हैं.
वैज्ञानिकों को विस्तृत तस्वीर तभी मिल पाती है जब चक्रवात तट से 300-400 किमी की दूरी पर होता है. लेकिन जब तक इस बारे में बेहतर जानकारी मिलती है, तब तक तैयारी करने के लिए बहुत ज्यादा कम समय बचता है. तितली चक्रवात के बारे में पता लगाना इसलिए कठिन था क्योंकि वह आवर्ती चक्रवात (दिशा बदल लेना) में बदल गया था. हिंदुस्तान ने तूफान की भविष्यवाणी करने वाले मॉडल अमेरिका व यूरोप से लिए हैं लेकिन उसे व बेहतर करने के लिए संसाधनों की कमी है.
शोधकर्ताओं ने चक्रवात के समय होने वाले निकासी अभियान के तरीके बताए
. पहला
उपाय है प्रिवेंटिव, इसके तहत
असर एरिया को पूरी तरह खाली कर दिया जाता है
. लेकिन
बेकारसड़क
व अपर्याप्त सार्वजनिक वाहनों के कारण
हिंदुस्तान में ऐसा कम ही हो पाता है
. साथ ही गरीब लोगों के पास भी वैकल्पिक आवास के लिए कम संसाधन होते हैं
.
शेल्टर इन प्लेस वाले तरीके में पहले से मौजूद घरों व सामुदायिक बिल्डिंगों में दुर्ग बनाए जाते हैं जिसके लिए बहुत ज्यादा पैसे की आवश्यकता होती है. इसके अतिरिक्त एक व उपाय है जिसे वर्टीकल निकास बोला जाता है. इसमें लोगों को असर एरिया के भीतर ही विशेष रूप से डिजाइन की गई इमारतों में भेजा जाता है. तितली चक्रवात के समय इस तरीके का सबसे अधिक इस्तेमाल हुआ.
गवर्नमेंट ने दावा किया है कि तितली चक्रवात के समय 3 लाख लोगों की सुरक्षित तरीके से निकासी कराई गई. लेकिन एक शोधकर्ता का कहना है कि यह संख्या गलत है. उन्होंने बोलाकि हुदहुद व फिलिन में लोगों की जान इसलिए बची क्योंकि यह चक्रवात वर्ष 1999 में आए सुपरसाइक्लोन से उल्टा था. इसमें तूफान उतना भयानक नहीं था व न ही पानी का स्तर उतना बढ़ा था.