गांव का कब्रिस्तान, उसमें चामुंडा देवी का मंदिर व उसके निकट मजार. मजार पर लोग दुआएं मांग रहे होते हैं तो मंदिर में मां की आरती की जा रही होती है, लेकिन इससे किसी को कोई परेशानी नहीं होती हिंदू व मुसलमान एक-दूसरे के धार्मिक आयोजनों में बिना किसी भेदभाव औरसंकोच के बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं.
कब्रिस्तान के बीचों-बीच मां चामुंडा देवी का मंदिर है. इसमें होने वाले आयोजनों में मुसलमान बढ़चढ़कर भाग लेते हैं. हिंदू की मृत शरीर यात्रा में शामिल होकर मुसलमान गंगा नदी तक जाते हैं तो मुस्लिम समुदाय के किसी आदमी की मृत्यु होने पर हिंदू कब्रिस्तान पहुंचते हैं. शकीला कहती हैं कि गौ माता या भैंस के बियाने पर पहला दूध (खीज) चामुंडा मंदिर में ही चढ़ाते हैं. बुजुर्ग मास्टर अब्दुल सलाम गर्व से बताते हैं कि गांव में भाईचारा बहुत है.
तब बनी थी आपसी सहमति
गांव के बुजुर्ग 80 वर्षीय फूल सिंह बताते हैं कि करीब 45 वर्ष पहले साल 1974 में यहां सलेमपुर रियासत का बाग हुआ करता था. उस बाग में एक चबूतरे पर चामुंडा देवी स्थापित थीं.एक दिन शरारती तत्व ने चबूतरे को ध्वस्त कर दिया. कुछ लोगों ने माहौल बिगाड़ने की प्रयास की, लेकिन आपसी सहमति बनी व पुलिस प्रशासन ने चामुंडा देवी के चबूतरे की मरम्मत कराते हुए उसके चारों तरफ पक्की दीवार बनवा दी थी.
जय सिंह करते हैं मंदिर और मजार की सफाई गांव के जय सिंह की यूं तो कपड़ों की दुकान है, लेकिन वह धार्मिक कार्यों में अधिक रुचि रखते हैं. सुबह-शाम कब्रिस्तान में बने चामुंडा देवी मंदिर व समीप बने मजार पर भी साफ-सफाई करते हैं.