सीबीआई निदेशक अलोक वर्मा की छुट्टियां रद्द होकर वह ड्यूटी पर वापस लौटेंगे या फिर वह छुट्टियां पर ही रहेगें, इस मुद्दे पर सुप्रीम न्यायालय में आज (बुधवार) प्रातः काल 11 बजे सुनवाई होगी। मामले में अलोक वर्मा व केन्द्र गवर्नमेंट अन्य सभी पक्षकारों ने अपनी अपनी दलीलें रखीं जिसमें केन्द्र की बहस अभी जारी है जिसके बाद सीवीसी अपनी दलीलें पेश करेगी। पिछली सुनवाई में 29 नवंबर को केन्द्र गवर्नमेंट की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी कि आलोक वर्मा दिल्ली में ही हैं उसी सरकारी आवास में। ऐसे में यह कहना उचित नहीं कि उनका ट्रांसफर किया गया है। ‘
केंद्र गवर्नमेंट ने बोला कि 3 सदस्यीय कमेटी का कार्य सेलेक्शन का होता है जबकि अपॉइंटमेंट का कार्य गवर्नमेंट का होता है, यानी दो अलग अलग कार्य है। केंद्र गवर्नमेंट ने बोलाकमेटी पैनल चयन करके गवर्नमेंट को भेजती है उसके बाद उसका कार्य ख़त्म हो जाता है। गवर्नमेंट की प्राथमिक चिंता थी की CBI में लोगों के विश्वास को बनाए रखना जिस तरह से CBI के शीर्ष दो ऑफिसर एक-दूसरे के विरूद्ध गंभीर आरोप लगाया है उससे जनता की राय निगेटिव हो रही थी। व यही वजह है कि गवर्नमेंट ने सार्वजनिक हित में हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया ताकि CBI का आत्मविश्वास बना रहे।
सुनवाई में CBI के सीनीयर अफिसर एके बस्सी की ओर से एडवोकेट राजीव धवन ने बोला कि कोई नियम सीबीआई डायरेक्टर के 2 वर्ष के तय कार्यकाल की अवहेलना नहीं कर सकता। CVC या गवर्नमेंट को उन्हें छुट्टी पर भेजने का अधिकार हासिल नहीं है।
आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने का निर्णय इसलिये लिया गया क्योंकि कुछ खास मामलों की जांच से वो जुड़े थे। एक अन्य याचिकाकर्ता सीबीआई के DIG मनीष सिन्हा की ओर से पेश एडवोकेट इन्दिरा जंय सिंह ने बोला कि वो अभी अपने केस मे जिरह नहीं करना चाहती, इन्दिरा जंय सिंह ने बोला कि पहले न्यायालय में आलोक वर्मा की याचिका पर सुनवाई होने दे, वो उसके आउटकम का इंतजार करेंगी। कांग्रेस पार्टी नेता और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के एडवोकेट सिब्बल ने सुप्रीमकोर्ट को बताया कि सीवीसी की CBI पर supervision की शक्ति करप्शन के मामलों तक ही सीमित है। यह सीवीसी को CBI प्रमुख ऑफिस को सील करने या मजबूरन छुट्टी के लिए सिफारिश करने के लिए दबाव नहीं बना सकता है।
कपिल सिब्बल ने बोला कि नियुक्ति करने की अधिकार में निलंबन या खारिज करने की अधिकार भी होगा यही कारण है कि आलोक वर्मा के विरूद्ध जो कुछ भी किया जाना था, उसे चयन समिति में जाना पड़ा। यह कल सीएजी, सीवीसी के साथ भी हो सकता है।
सिब्बल ने आलोक वर्मा के पक्ष में दलील देते हुए कहि कि – जिस हाई क्षमता सेलेक्शन कमिटि के पास CBI डायरेक्टर को नियुक्त करने का अधिकार है, ससपेंड या डिसमिस करने का अधिकार भी उसी कमिटि के पास होगा।
कपिल सिब्बल ने बोला कि आरोप CVC के विरूद्ध भी है, जो आलोक वर्मा के साथ हुआ है CVC के साथ भी हो सकता है। CJI ने पूछा ‘CVC के विरूद्ध आरोप कहाँ है। ‘ CBI निदेशक आलोक वर्मा के एडवोकेट फली नारीमन ने CVC जाँच पर आलोक वर्मा के जवाब के लीक होने को लेकर दलील दी कि कि न्यायालय इस मामले की सुनवाई से जुडी जानकारी के पब्लिकेशन पर रोक लगा सकता है।
CBI ऑफिसर बस्सी के एडवोकेट राजीव धवन ने इसका विरोध किया। CJI ने बोला – हम इस मुद्दे पर कोई आदेश पारित नहीं कर रहे हैं। अलोक वर्मा के एडवोकेट ने न्यायालय से बोला कि किसी तरह की सीक्रेट जानकारी लीक नहीं हुई। अलोक वर्मा के एडवोकेट ने CBI निदेशक की नियुक्ति और ट्रांसफ़र की अवधि से जुड़े नियम बताने प्रारम्भ किए। वीनित नारायण केस में सुप्रीम न्यायालय के पुराने निर्णय का हवाला देते हुए बोला कि निदेशक को २ वर्ष से पहले हटाया नहीं जा सकता व न ही तबादला किया जा सकता है, एडवोकेट फली नरीमन ने कहा कि वर्मा को छुट्टियों पर भेजना सीवीसी व गवर्नमेंट के अधिकार से बाहर था, जिसने उन्हें नियुक्त किए गए उच्चस्तरीय नियुक्ति पैनल से मंजूरी के बिना ही आलोक वर्मा को कामकाज से हटा दिया। उन्होंने CBI प्रमुख की शक्तियों को कम करने के लिए कानून के तहत भी विचार नहीं किया।
सीबीआई प्रमुख को भी हस्तांतरित नहीं कर सकते हैं, जिसे कानून के तहत एक निश्चित कार्यकाल दिया गया है, तो आप इस प्रस्ताव को उच्चस्तरीय पैनल से पूछे बिना उनके पंख कैसे काट सकते है। एडवोकेट ने बोला कि CBI का DSPE कानून कहता है कि बिना 3 सदस्यीय कमेटी, जिसमे पीएम, मुख्यन्यायधीश व नेता प्रतिपक्ष हैं, उनकी अनुमति के 2 वर्ष से पहले CBI निदेशक का ट्रांसफर नहीं हो सकता, इस मामले में नियुक्ति पैनल का अधिकार छीना गया है।
सीवीसी की रिपोर्ट पर आलोक वर्मा ने सफाई दी कि सुप्रीमकोर्ट में फिल्हाल सुनवाई इसपर नहीं हो रही। न्यायालय मेन मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है कि आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा जाना ग़ैरकानूनी है या नहीं। एडवोकेट नरीमन ने सुप्रीमकोर्ट से बोला कि आलोक वर्मा के शक्तियों को विभाजित करने के आदेश का कोई आधार नहीं है। अगर उनके विरूद्ध कोई शिकायत थी तो समिति से संपर्क किया जाना चाहिए था।
जज के एम जोसेफ ने सवाल किया कि अगर निदेशक घूस लेते रंगे हाथों पकड़ा जाए तो उस वक़्त कारवाई का तरीक़ा क्या होना चाहिए? क्या नियुक्ति पैनल की मंज़ूरी आने तक निदेशक को पद पर एक मिनट भी कार्य करना चाहिए? जज जोसेफ ने फली नरीमन से पूछा मान लीजिए कि एक CBI प्रमुख को घूस लेते हुए रंगे हाथो पकड़ा गया है उस समय कार्रवाई का उपाय क्या होना चाहिए ?आप कहते हैं कि समिति से संपर्क किया जाना चाहिए। लेकिन क्या ऐसे आदमी की ड्यूटी एक मिनट के लिए भी जारी रहना चाहिए? अंत में न्यायालय ने बोला कि हम अभी तक हमने सीवीसी रिपोर्ट को अपने कार्रवाई का भाग नहीं बनाया है। अगर आवश्यकता पड़ी तो हम गवर्नमेंट से इसपर जवाब मांगेंगे।
इससे पहले 20 नवंबर को चीफ जस्टिस अलोक वर्मा के जवाब की बातें मीडिया में बाहर आने पर चीफ जस्टिस काफ़ी नाराज हुए थे व उस दिन सुनवाई करने से मना कर दिया था।चीफ जस्टिस ने सुप्रीमकोर्ट में दायर सीबीआई के DIG मनीष कुमार सिन्हा की याचिका में कही गई बातों पर नाराजगी जताते हुए बोला थानकि सुप्रीम न्यायालय कोई प्लेटफार्म नहीं है कि कोई भी आये व कुछ भी बोले। हम इसे अच्छा करेंगे। आलोक वर्मा के एक दूसरे एडवोकेट गोपाल शंकर नारायण ने जब कुछ कहने की प्रयास की तो CJI ने बोला कि हम केवल फली नरीमन को सुनेगें व किसी को नहीं।
इससे पहले सुप्रीम न्यायालय मे अलोक वर्मा ने सीवीसी जाँच पर अपना जवाब दाखिल कर दिया जो कि सुप्रीम न्यायालय के आदेश पर सीलकवर में दायर किया गया । सीवीसी की जांच रिपोर्ट में CBI निदेशक आलोक वर्मा को क्लीनचिट नहीं दी गई है। सुप्रीम न्यायालय ने CVC की रिपोर्ट आलोक वर्मा के एडवोकेट फली नरीमन, अटॉर्नी जनरल व CVC के एडवोकेट तुषार मेहता को सीलबंद लिफाफे में देने का दिया आदेश। सभी पक्ष 20 नवंबर की सुनवाई से एक दिन पहले 19 नवंबर को सुप्रीम न्यायालय में अपना जवाब दाखिल करें।इस बीच अलोक वर्मा का सीलकवर में सुप्रीमकोर्ट में दाखिल जवाब मीडिया में जारी हो गया था जिसे लेकर चीफ जस्टिस बेहद नाराज हो गए थे। बुधवार को केन्द्र गवर्नमेंट अपनी बहस पूरी करेगी व फिर सीवीसी अपनी दलीलें रखेगी।