अब हिंदुस्तान में भी 600 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से दौड़ेगी ये मैग्लेव ट्रेन

जापान  चाइना के बाद अब हिंदुस्तान में भी 600 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने वाली मैग्लेव ट्रेन का मॉडल तैयार किया गया है इसे इंदौर के प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र में तैयार किया गया है हिंदुस्तान में जब रेलवे यूनिवर्सिटी बनेगी तभी शायद रेलवे की नयी क्रांति का उपयोग हो सकेगा फिल्हाल इंदौर में इस मैग्लेव ट्रेन का एक मॉडल तैयार किया गया है, जो स्कूल के बच्चों से लेकर लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है आरआर कैट (RRCAT)के वैज्ञानिक आर एन एस शिंदे ने 50 लोगों की टीम के साथ दिन रात मेहनत कर इस मॉडल को तैयार किया है लगभग 10 वर्षों की मेहनत के बाद इस मॉडल को बनाया गया है जो मैग्नेटिक फील्ड पर उसकी सतह के ऊपर यानी हवा में चलती नजर आई

फिलहाल जापान  चाइना के अतिरिक्त यह टेक्नोलॉजी किसी के पास नहीं है अमेरिका भी इस टेक्नोलॉजी से बहुत ज्यादा दूर है लेकिन, इस मॉडल के बाद हिंदुस्तान बहुत ज्यादाकरीब है इसमें सुपर कंडक्टर से लिक्विड नाइट्रोजन द्वारा कुल किया जाता है जो कि मैग्नेटिक फील्ड में होता है, इससे जो मैग्नेटिक फील्ड जनरेट होता है उसे गति के साथ यूज करके मूवमेंट दिया जाता है वर्ल्ड साइंस डे के मौके पर बड़ी संख्या में स्कूल के बच्चे कैट पहुंचे थे  अलग-अलग प्रकार के आविष्कारों को देख कर अचंभित भी थे  कुछ नया सीखने का जज्बा लेकर आए बच्चों ने कई सवाल भी किए मैग्लेव ट्रेन इन बच्चों के लिए सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र रही

राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र (RRCAT) जिसे आरआरकेट के नाम से भी जाना जाता है हिंदुस्तान गवर्नमेंट के परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतगर्त आने वाले इस केन्द्र में राष्ट्रके विभिन्न एरिया की प्रगति के लिए रात दिन वैज्ञानिक नयी नई तकनीक पर रिसर्च कर रहे हैं  यहां के वैज्ञानिकों ने बुलेट ट्रेन से भी तेज गति से चलने वाली मैग्लेव ट्रेन का पासपरीक्षण किया है सामान्य भाषा में कहें तो ये ट्रेन हवा में चलेगी मैग्नेटिक फील्ड पर चलने वाली इस ट्रेन की गति 800 किलोमीटर प्रति घंटा तक प्राप्त कर सकती है फिलहाल, इस ट्रेन का पास परीक्षण किया गया है हालांकि, गवर्नमेंट इस तकनीक को किस तरह से प्रयोग करेगी ये आने वाले वर्षो में पता चलेगा, लेकिन पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक से बनाई ये मैग्लेव ट्रेन की तकनीक जापान  चाइना की तकनीक के बराबर है

इस तकनीक को इजाद करने के बाद विदेश की कई रिसर्च एजेंसियां RRCAT के वैज्ञानिकों के संपर्क में हैं वे भी चाहते है कि साथ में रिसर्च करें फिलहाल, गवर्नमेंट को सोचना होगा कि वो किस तरह से वैज्ञानिकों की इस तकनीक का प्रयोग करते हैं हालांकि, RRCAT में मुख्यतौर पर परमाणु ऊर्जा से जुडे़ विभिन्न एरिया पर रिसर्च  डेवलपमेंट किया जाता हैलेकिन यहां के वैज्ञानिक राष्ट्र को सझम बनाने वाले दूसरे क्षेत्रों में भी लगातार कार्य कर रहे है एक  जहां राष्ट्र की सीमा पर सेना अपना शौर्य का परिचय दे रहे है वहीं, राष्ट्र के वैज्ञानिक भी नयी नई तकनीक के जरिए सेना के हथियारों को उन्नत बनाने में मदद कर रहे हैं आरआरकेट के वैज्ञानिकों ने लेजर बीम पर पास अनुसंधान किया है जिसके जरिए कई किलोमीटर खड़े टैंक को भी ध्वस्त किया जा सकता है

1984 में स्थापित आरआरकेट (RRCAT)में लेजर पर सबसे ज्यादा अनुसंधान किए जा रहे हैं इन लेजर बीम का प्रयोग न्यूक्लियर रियेक्टर में किया जाता है लेकिन इसके साथ ही यहां के वैज्ञानिक ने लेजर को दूसरे एरिया में प्रयोग करने के लिए कई तरह के इस्तेमाल किए हैं अलग-अलग लेजर बीम के जरिए मेडिकल एरिया में मुश्किल से मुश्किल ऑपरेशन को किया जा सकता है युद्ध के एरिया में लेजर बीम का बखूबी प्रयोग किया जा सकता है यहां के वैज्ञानिकों ने युद्ध के एरिया में टैंक पर लगने वाली लेजर बीम इजाद की है, जिसके जरिए कई किलोमीटर दूर तक भी सटीक निशाना लगाया जा सकता है इसके अतिरिक्त ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में भी इस तकनीक का बखूबी प्रयोग किया जा रहा है

RRCAT के पदाधिकारी बताते हैं कि चूंकि ये रिचर्स सेंटर पूरी तरह से सीक्रेट रिसर्च करता है, लेकिन राष्ट्र की जरूरतों को देखते हुए कई दूसरे क्षेत्रों में भी इस्तेमाल किए गए हैं जो कि राष्ट्र की रक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है इसके साथ ही हमारे उद्योगों को कम मूल्य पर नयी तकनीक मिले हैं इन पर कई कार्य किए जाते हैं मौजूदा तनाव पूर्ण माहौल में जहां सेना अपने शौर्य का परिचय दे रही है वहीं, राष्ट्र के वैज्ञानिक भी अपने प्रयोगों के जरिए राष्ट्र की सुरक्षा को बढ़ाने में अपना सहयोग दे रहे हैं