अब डॉक्टरों के साथ ऐसा काम करने पर लगेगा पांच लाख का जुर्माना, जानिए ये है वजह

डॉक्टर हर्षवर्धन ने पिछले शनिवार को डॉक्टरों को सुरक्षा देने के लिए मुख्यमंत्रियों को एक लेटर लिखा  इसके साथ  इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा तैयार मसौदे को अटैच किया.
हिंसा रोकथाम  नुकसान या संपत्ति नुकसान अधिनियम, 2017 मसौदे के तहत डॉक्टरों पर होने वाली हिंसा के विरूद्ध 10 वर्ष की कारागार  पांच लाख का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव दिया गया था. आईएमए वर्तमान में डॉक्टरों पर हमला करने वालों को सात वर्ष की कारागार देने की मांग कर रहा है.

इस मसौदे को आईएमए ने 2017 में ही मंत्रालय को सौंपा था. जिसमें डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय कानून बनाने की मांग की गई थी. पश्चिम बंगाल के एनआरएस अस्पताल में हुई हिंसा के बाद एक बार फिर आईएमए ने अपनी मांग दोहराई है. मसौदा में कड़े प्रावधान किए गए हैं. इसमें डॉक्टरों पर होने वाली शारीरिक  मानसिक हिंसा को वर्गीकृत किया गया है. यह केवल अस्पताल या उसके इर्द-गिर्द के 50 मीटर दायरे को ही नहीं बल्कि होम विजिट (घर आकर चेकअप करना) को भी कवर करता है.

मसौदे के अनुसार इस तरह की हिंसा को संज्ञेय, गैर-जमानती क्राइम मानकर प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की न्यायालय में ट्रायल चलाने योग्य माना जाना चाहिए. दंड प्रावधानों के अतिरिक्त मसौदे में बोला गया है कि यदि दोषी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उसे क्षतिपूर्ति के तौर पर मुआवजे की दोगुनी मूल्य चुकानी होगी. आईएमए के तत्कालीन अध्यक्ष चिकित्सक केके अग्रवाल ने मंत्रालय को यह मसौदा सौंपा था.

चिकित्सक अग्रवाल ने कहा, ‘उस समय जब हमने डॉक्टरों की कानूनी सुरक्षा की ओर ध्यान दिया तो हमें पता चला कि 19 राज्यों में कुछ कानून हैं. जब हमने अंतर-मंत्रालयी समिति से मुलाकात की तो अलावा सचिव ने बोला कि स्वास्थ्य प्रदेश की जिम्मेदारी है. ऐसे में यदि प्रदेश केन्द्र को इस तरह के कानून के लिए लिखेंगी तो एक केंद्रीय कानून बनाया जा सकता है. उनका बोलना था कि भारतीय दंड संहिता में इस हालात से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं. लेकिन हमारा बोलना था कि सार्वजनिक हित में डॉक्टरों के लिए एक विशेष प्रावधान की जरूरत है. यदि एक चिकित्सक के साथ हाथापाई होती है तो उसके ड्यूटी पर न आने से कई सौ मरीजों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है.

चिकित्सक हर्षवर्धन ने मुख्यमंत्रियों को लिखे अपने लेटर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा सभी मुख्य सचिवों को भेजे गए जुलाई 2017 के लेटर का हवाला दिया जिसमें आईएमए द्वारा उठाए गए मुद्दों की समीक्षा करने के लिए मंत्रालय के तहत गठित अंतर-मंत्रालयी समिति द्वारा लिए गए फैसला शामिल हैं. समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि स्वास्थ्य मंत्रालय सभी राज्यों को सुझाव दे कि यदि उनके पास डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए विशिष्ट कानून नहीं है तो वह इस मसौदे पर विचार करें.