बाबू जगजीवन राम के जीवन से जुड़े रोचक किस्से, शायद ही आपने सुने हों

जगजीवन राम भारत के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री रह चुके हैं। वह दलित समाज के प्रमुख नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने पिछड़ा वर्ग, दलितों और वंचितों के लिए आवाज उठाई। उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल किया, साथ ही दलितों के लिए मतदान की मांग की। जगजीवन राम को बाबू जी कहकर पुकारा जाता है। बिहार के छोटे से गांव में जन्में जगजीवन राम दिल्ली की राजनीति का बड़ा चेहरा बने। दो बार प्रधानमंत्री बनने की रेस में शामिल हुए। 5 अप्रैल को पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की जयंती मनाई जाती है। उनकी जयंती के मौके पर बाबू जगजीवन राम के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे रोचक किस्सों के बारे में पढ़िए, जिन्हें शायद ज्यादा लोग न जानते हों।

जब विदेश में पढ़ाई का मौका ठुकराया

लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष रही मीरा कुमार जगजीवन राम की बेटी हैं। उन्होंने पिता के जीवन से जुड़ा एक किस्सा सुनाया। जगजीवन राम ने 10वीं क्लास को फर्स्ट डिविजन से पास किया। आगे की पढ़ाई के लिए उनके पास पैसे नहीं थे, तो जगजीवन राम की माता जी ने स्थानीय नन से मदद मांगी। नन से लखनऊ में स्थित क्रिस्चन स्कूल में मुफ्त पढ़ाई के साथ ही उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेजने का मौका देने का वादा किया। इस पर जगजीवन राम की माता जी ने मना कर दिया। उनका कहना था कि आप मेरे बच्चे को पढ़ाएंगी तो लेकिन उनका धर्म परिवर्तित कर देंगी।

मालवीय ने बीएचयू में पढ़ने के लिए किया आमंत्रित

बाबू जगजीवन राम ने आरा के एक स्कूल से शुरुआती शिक्षा हासिल की। इस दौरान एक बार मदन मोहन मालवीय आरा में स्कूल समारोह में शामिल होने आए थे। उनकी मुलाकात जब जगजीवन राम से हुई तो वह उनकी संस्कृत पर जबरदस्त पकड़ से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने बाबू जगजीवन राम को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। जगजीवन राम ने बीएचयू में दाखिला लिया लेकिन हास्टल, मेस से लेकर क्लास तक भेदभाव का सामना करना पड़ा। इस पर उन्होंने बीएचयू छोड़कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी से स्नातक किया।

जगन्नाथ पुरी मंदिर में नहीं किए दर्शन

उस दौर में धार्मिक स्थलों पर दलितों का प्रवेश वर्जित था। एक बार वह अपनी पत्नी समेत जगन्नाथ पुरी मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचे। जन नेता होने के कारण उन्हें तो मंदिर में जाने की अनुमति मिल गई लेकिन पत्नी समेत अन्य दलित समुदाय से जुड़े लोगों को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया। इस पर जगजीवन राम ने भी मंदिर में दर्शन से इनकार कर दिया। पत्नी इंद्राणी ने अपनी डायरी में इस घटना का उल्लेख किया।