सालो बाद खुला सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु का राज, जानकर भरोसा नहीं कर पा रहे लोग

18 जनवरी 1941, रात एक बज कर पैंतीस मिनट पर 38/2, एलगिन रोड, कोलकाता पर एक जर्मन वांडरर कार आ कर रुकी। कार का नंबर था बीएलए 7169।

 

लंबी शेरवानी, ढीली सलवार और सोने की कमानी वाला चश्मा पहने बीमा एजेंट मोहम्मद जियाउद्दीन ने कार का पिछला दरवाजा खोला।

ड्राइवर की सीट पर उनके भतीजे बैठे हुए थे। उन्होंने जानबूझ कर अपने कमरे की लाइट बंद नहीं की। चंद घंटों में वो गहरी नींद में सोए कोलकाता की सीमा पार कर चंदरनागोर की तरफ बढ़ निकले।

वहां भी उन्होंने अपनी कार नहीं रोकी। वो धनबाद के पास गोमो स्टेशन पर रुके। उनींदी आंखों वाले एक कुली ने जियाउद्दीन का सामान उठाया।

कोलकाता की तरफ से दिल्ली कालका मेल आती दिखाई दी। वो पहले दिल्ली उतरे। वहां से पेशावर होते हुए काबुल पहुंचे… वहां से बर्लिन… कुछ समय बाद पनडुब्बी का सफर तय कर जापान पहुंचे। कई महीनों बाद उन्होंने रेडियो स्टेशन से अपने देशवासियों को संबोधित किया… ‘आमी सुभाष बोलची।’

भारत की स्वतंत्रता के लिए आजाद हिंद फौज का नेतृत्व करने वाले सुभाष चंद्र बोस की मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है। हाल में इस मुद्दे पर फिर राजनीतिक हलकों और बुद्धिजीवियों के बीच तीखी बहस छिड़ गई है।

आखिर ‘नेताजी’ सुभाष बोस किन परिस्थियां में गायब हुए या फिर उनकी मौत हुई? क्यों कई जाने-माने लोग उनकी मौत की खबर पर भरोसा नहीं कर रहे है?