सरकार के हाथ से फिसली कानून- व्यवस्था, दिल्ली की सड़को पर अचानक हुआ ये…

पहली बार राष्ट्रीय राजधानी में उथल पुथल के हालात दिखे। करीब 500 से ज्यादा महिलाएं जाफराबाद की भीड़भाड़ी भरी गलियों से मेट्रो स्टेशन की ओर से बढ़ती हुई नजर आईं हालांकि पुलिस ने यहां तुरंत दखल नहीं दिया।

 

पुलिस का अनुमान था कि महिलाएं धरने की मौजूदा जगह की ओर बढ़ रही है जहां गलत ढंग से रोड बंद करके प्रदर्शन शुरु कर दिया गया था।

मौके पर बहुत कम महिला पुलिस कर्मी मौजूद थीं जो महिलाओं को रोकने में असमर्थ थीं। पुलिसकर्मियों को अपने ऊपर अधिकारियों से भी इस बारे में कोई आदेश नहीं मिले।

रविवार सुबह महिलाओं के समूह में 400 पुरुष शामिल हुए और अधिकारियों का ऐसा दावा है कि यह स्थानीय लोग नहीं थे और बाहर से आए थे।

इस दौरान प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़कर 3000 पहुंच गई और उन्हें बल प्रयोग करके हटाना पुलिस की छोटी टीम के लिए मुश्किल हो गया।

एक समूह की ओर से लंबे समय से धरना करते हुए रोड बंद करने के बाद दूसरे समुदाय के दूसरे समूह ने यह कहते हुए पूरी सड़क जाम करने की बात कही कि धरने के विरोध में धरना करने की अनुमति होनी चाहिए। दोपहर आते- आते दोनों समूहों ने एक दूसरे पर पत्थरबाजी करनी शुरु कर दी।

जाफराबाद में प्रदर्शन को पुलिस ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया और अधिकारियों को लगा कि शाहीनबाग की तरह यह भी शांतिपूर्ण प्रदर्शन होगा।

इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारत की यात्रा पर आए थे और उनके दिल्ली आने के बीच पूर्वी हिस्से से पुलिसकर्मियों को हटाकर उनकी तैनाती दूसरी जगहों पर करनी पड़ी।

जो हिंसा पत्थरबाजी से शुरु हुई थी उसने धीरे धीरे भयानक रूप ले लिया। घर- दुकानें जलाई जाने लगीं और पेट्रोल बम फेके जाने और गोलियां चलने की घटनाएं भी सामने आईं।

चांद बाग में एक मस्जिद के पास डीसीपी अमित शर्मा अपनी तीन कंपनियों के साथ मौजूद थे। उन पर यहां हमला हुआ। 20 जगहों पर हिंसा भड़कने की खबरें आईं।

पहली नजर में देखने पर ऐसा लगता है कि गलत अनुमान, पुलिस बल की अपर्याप्त तैनाती और त्वरित निर्णय की कमी की वजह से उत्तर पूर्वी दिल्ली में पुलिस के हाथ से कानून व्यवस्था का नियंत्रण फिसल गया और 36 घंटे के अंदर दंगे की आग में झुलकर 43 लोगों ने अपनी जान गंवा दी।

बीते रविवार हुए दंगों को लेकर कई अधिकारियों से बात करने पर कुछ ऐसी बातें सामने आई हैं जिनसे राजधानी में शांति भंग होने की वजहें पता चलती हैं। कई ऐसी कमियां रहीं जिनकी वजह से दंगे की आग को रोका नहीं जा सका।