तेजस्‍वी और तेज प्रताप के बीच हुआ ये , अब क्या होगा लालू का भविष्‍य

 बिहार और देश की राजनीति में कभी सबसे शीर्ष नेताओं में शामिल लालू यादव आज एक बुरा दौर झेल रहे हैं। राजनीतिक सफर के इस पड़ाव में जहां उनके बेटे आपस में भिड़ रहे हैं वहीं परिवार पर न सिर्फ अपनी पार्टी और परिवार को एकजुट बनाए रखने की बड़ी चुनौती सामने खड़ी हो गई है बल्कि इस जंग में अपना राजनीतिक अस्तित्‍व भी बचाना एक बड़ी चुनौती है।

फिलहाल तो जिस ब्रांड लालू के बिना देश की राजनीतिक अधूरी मानी जाती थी उसको बिहार की सरकार के श्रम संसाधन और विज्ञान एवं प्रौधोगिकी मंत्री जीवेश कुमार एक एक्‍सपायर्ड माल बता चुके हैं। लालू के बेटों के बीच मची जंग का सीधी असर लालू के ब्रांड पर पड़ता दिखाई दे रहा है। बिहार के गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले लालू अपने नाम और पहचान को बचाने की जंग लड़ते दिखाई दे रहे हैं।

तेजस्‍वी और तेजप्रताप की मां राबड़ी देवी दोनों के बीच सुलह कराने की नाकाम कोशिश कर चुकी हैं। ऐसे में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि सोशल इंजीनियरिंग के दम पर राज्‍य की सत्‍ता पर 15 वर्ष तक शासन करने वाले लालू के ब्रांड का अब आगे क्‍या होगा। आपको बता दें कि 20 अक्‍टूबर को लालू यादव तीन वर्ष के बाद पटना आ रहे हैं। ऐसे में वो अपने ब्रांड को कितना बनाए रखने में सफल होंगे ये भी फिलहाल भविष्‍य के गर्भ में ही छिपा हुआ है।

राजनीतिक विश्‍लेषक प्रदीप सिंह का मानना है कि तेज प्रताप और तेजस्‍वी के बीच छिड़ी जंग पार्टी का चेहरा और खुद को लालू का राजनीतिक वारिस दिखाने की है। उनके मुताबिक इस लड़ाई का पार्टी और लालू की बनाई पार्टी की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जहां तक लालू के ब्रांड की बात है तो वो ब्रांड लालू की जगह तेजस्‍वी होंगे। इसकी शुरुआत हो चुकी है।

उनका कहना है कि बिहार की जनता तेजस्‍वी को लालू के राजनीतिक वारिस के तौर पर ही देखती है। वहीं यदि तेजप्रताप की बात करें तो उनको लेकर पहले ही राज्‍य की जनता गंभीर नहीं थी और भविष्‍य में उनका हाशिये पर जाना भी लगभग तय है। सोशल इंजीनियरिंग के दम पर लालू ने जिस सफल राजनीति की शुरुआत की थी उसको तेजस्‍वी ने पूरी तरह से साध लिया है। प्रदीप मानते हैं कि जब तक बिहार के मुस्लिम और यादव वोट आरजेडी के खाते में आते रहेंगे तब तक तेजस्‍वी की राजनीति पर कोई संकट भी नहीं आने वाला है।