दो वक़्त की रोटी के लिए जो कभी हुआ करते थे मुहताज़, वो आज दूसरो के सपनों को करते है साकार

हम यदि अपने देश के खेल इतिहास और खेलों में मैडल जीतने वालों पर एक दृष्टि डालें तो पाएंगे अधिकतर विजेता हमारे गाँवों और क़स्बों से ही उभर कर आते हैं।

इनमें ऐसे भी खिलाड़ी होते हैं जिन्हें तो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं होती।  और जिनके पास खेलने के उपकरण तो दूर की बात है, पहनने के न तो कपड़े ही होते हैं और न ही अच्छे जूते।

बॉल खिलाडियों की खोज में अपनी Dribble Academy चलाते हैं। जहाँ इन्होंने उन ग़रीब बच्चों के सपनों को साकार किया है जो कभी दो वक़्त की रोटी के लिए भी मुहताज़ थे।

आज इनकी अकादमी में बच्चे खेल के साथ-साथ पढ़ाई-लिखाई में भी आगे बढ़ रहे हैं।  इस अकादेमी के कई बच्चे अमेरिका में भी अपने खेल का प्रदर्शन कर देश का नाम रौशन कर चुके हैं।  आज गेझा और उसके आस-पास के क़रीब एक हज़ार बच्चों की ज़िन्दगी में खेल के माध्यम से ऐसा बदलाव आया है, जिसकी उन्होंने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी।